केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुजरात चुनाव को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि इस बार भी चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई होगी। आम आदमी पार्टी का गुजरात में कोई आधार नहीं है। सवाल उठ रहा है कि क्या सच में गुजरात के अंदर आम आदमी पार्टी का कोई असर नहीं है? पिछली बार गुजरात में आप की क्या स्थिति थी? अभी कितना प्रभाव पड़ सकता है? बीते दो साल में केजरीवाल की पार्टी ने किन राज्यों में चुनाव लड़ा और वहां उसका क्या हुआ? आइए जानते हैं… केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को एक निजी न्यूज चैनल पर इंटरव्यू दिया। इसमें उनसे सवाल पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि इस बार गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबला होने वाला है? इसका जवाब देते हुए शाह ने कहा, ‘मैं नहीं मानता कि गुजरात में कभी भी तीसरे पक्ष का स्थान रहा है। मेरी समझ के मुताबिक मेरे आने के बाद से तो मैंने पॉलिटिक्स में ऐसा देखा नहीं है।’ शाह से आगे तीनों मुख्य पार्टियों के नारों को लेकर सवाल हुआ। पूछा गया कि बीजेपी का नारा है ‘भरोसा नी सरकार’, कांग्रेस का नारा है ‘काम बोले छे’, केजरीवाल आम आदमी पार्टी का नारा है ‘एक मोको केजरीवाल ने’, इन तीन नारों में अमित शाह को क्या फर्क दिखता है? इसपर बोलते हुए शाह ने कहा, ‘एक बात चीमनभाई पटेल एक समर्थ राजकीय नेता थे। ये देश के सब राजनीतिक समझ वाले लोगों को स्वीकार करना पड़ेगा। उन्होंने किमलोक करके एक पार्टी बनाई चार साल में खत्म की। शंकरसिंह वाघेला ने भी अपनी पार्टी बनाई थी खत्म की। रती भाई ने अपनी पार्टी बनाई वो भी खत्म। कितने लोगों ने काम किया। केशुभाई पटेल ने भी पार्टी बनाई थी उनकी भी नहीं चली। गुजरात में तीसरी पार्टी के लिए जगह ही नहीं है। गुजरात के अंदर सीधी स्पर्धा दो पार्टियों के बीच में है। पहले जनता पार्टी थी, तब जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच। भारतीय जनता पार्टी धीरे-धीरे आगे बढ़ी। अब भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधी स्पर्धा रहती है।’
यही सवाल हमने गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार वीरांग भट्ट से किया। उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई दो राय नहीं है कि अब तक सिर्फ भाजपा और कांग्रेस के बीच ही लड़ाई रही है। पिछले दो दशक से भाजपा इसमें आगे है, लेकिन हर बार कांग्रेस से मजबूत टक्कर मिलती रही है।’ वीरांग आगे कहते हैं, ‘2017 में भी आम आदमी पार्टी ने गुजरात विधानसभा की 30 सीटों पर चुनाव लड़ा था। तब सारी सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हो गई थी। लेकिन तब के मुकाबले इस बार पार्टी ने ज्यादा दमखम दिखाया है। सूरत नगर निकाय चुनाव में आप की एंट्री हो चुकी है। आप के 27 पार्षदों ने चुनाव जीता था, हालांकि बाद में इनमें से पांच ने भाजपा का दामन थाम लिया। फिर भी आप की ये मजबूत एंट्री मानी जा रही है। यही कारण है कि इस बार आप ने मजबूती से गुजरात चुनाव में अपना प्रचार शुरू किया है।’ वीरांग के अनुसार, ‘आम आदमी पार्टी की कोशिश गुजरात में सरकार बनाने की नहीं है, बल्कि एक नया विकल्प बनने की है। अरविंद केजरीवाल जानते हैं कि आप तभी गुजरात में मजबूत हो पाएगी जब वह अपनी जगह बना पाए। हाल ही में एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में भी उन्होंने ये माना कि अब उनकी पार्टी गुजरात में नंबर दो की हैसियत रखती है। केजरीवाल ने कांग्रेस को लेकर भी भविष्यवाणी की। कहा कि इस बार चुनाव में कांग्रेस को पांच से कम सीटें मिलेंगी।’
केजरीवाल पर चुनावी हिंदू बनने का आरोप क्यों लग रहा है?
वीरांग कहते हैं, ‘आम आदमी पार्टी ने 121 उम्मीदवारों की सूची जारी की है। इसमें केवल दो मुसलमानों को टिकट मिला है। उनका पूरा फोकस हिंदुओं के वोट पर है। यही कारण है कि वह गुजरात में हिंदुओं का दिल जीतने के लिए नए-नए तरीके अपना रहे हैं। श्रीराम मंदिर दर्शन कराने से लेकर नोटों पर भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की तस्वीर लगाने की मांग कर रहे हैं।’ वीरांग के अनुसार, आम आदमी पार्टी ने इसुदान गढ़वी को अपना सीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया है। इसुदान जिस गढ़वी समाज से आते हैं। गढ़वी के जरिए आम आदमी पार्टी इस समजा के वोटरों में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। गुजरात से पहले केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली के अलावा गोवा, उत्तराखंड और पंजाब जैसे राज्यों की सभी सीटों पर चुनाव लड़ा। पंजाब को छोड़कर अन्य राज्यों में आप को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली है। गोवा और उत्तराखंड में तो आप के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तक अपना चुनाव हार गए। गोवा में पार्टी को दो सीटों पर जीत मिली। वहीं, दो सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही। तीन सीटों पर आप उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। उसे कुल 6.8 फीसदी वोट मिला। 40 में से 39 सीट पर चुनाव लड़ी पार्टी के 24 उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। वहीं, उत्तराखंड में भी पार्टी ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। उसे एक पर भी जीत नहीं मिली। यहां तक की आप का उम्मीदवार कहीं दूसरे नंबर पर भी नहीं रहा। 70 में से सिर्फ सात उम्मीदवार जमानत बचा सके। 63 की जमानत तक जब्त हो गई।