करीब 20 साल तक अफगानिस्तान में जंग लगने के बावजूद अमेरिका के हाथ कुछ नहीं लगा। इस दौरान वह न तो तालिबान का कुछ बिगाड़ पाया और न ही अफगानिस्तान का कुछ बना पाया। इस दौरान बड़ी संख्या में अफगान नागरिकों की जान गई सो अलग। विडंबना यह है कि 19 अगस्त के दिन जिस दिन अफगानिस्तान में ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी की जश्न होना चाहिए, वहां हवाओं में एक अजीब सा मातम घुला हुआ है। आइए पढ़ते हैं, अफगानिस्तान में अमेरिका के हालात की इनसाइड स्टोरी।
बेहिसाब खर्च और हजारों शहीद, फिर भी तालिबान बेलगाम
अगर सिर्फ रुपए के हिसाब से बात करें तो अमेरिका ने अफगानिस्तान में करीब एक लाख करोड़ रुपए खर्च कर डाले। इसके अलावा अमेरिका ने अफगानिस्तान में तमाम निर्माण कार्यों में भी पानी की तरह पैसे बहाए। बीस साल तक चली जंग उसके 2448 सिपाही भी शहीद हो गए। वहीं 1144 नाटो सिपाहियों की भी इस दौरान मौत हो गई। इस दौरान अफगानिस्तान की सरकारी फौज के 66 हजार सिपाही भी मारे गए।
जमकर हुई बमबारी
अमेरिका ने बीते 20 साल में अफगानिस्तान में जमकर बमबारी की है। आंकड़ों के मुताबिक इसमें सबसे ज्यादा बम साल 2019 में गिराए गए हैं। साल 2006 में सबसे कम 310 बम गिराए गए थे। वहीं साल 2010 में 5101 बम अमेरिका की तरफ से अफगानिस्तान में गिराए गए। वहीं 2015 में ऐसे बमों की संख्या 947 थी। जाहिर सी बात है कि इन बमबाजियों का एकमात्र उद्देश्य तालिबान पर लगाम लगाना था। लेकिन आज अफगानिस्तान के हालात सच्चाई खुद बयां कर रहे हैं।
इसके बावजूद परिणाम रहा जीरो
हैरानी की बात यह है कि इतने सारे प्रयासों के बावजूद अमेरिका तालिबान पर न तो नियंत्रण कर पाया न उसे नेस्तनाबूद कर पाया। जैसे ही अमेरिकी फौजों ने अपने देश का रुख किया, तालिबान ने दोगुनी ताकत के साथ वापसी की। आलम यह रहा कि तमाम देश अंदाजा ही लगाते रह गए और तालिबान फिर से अफगानिस्तान पर काबिज हो गया।