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अमेरिका ही नहीं, भारत का एक छोटा गांव भी मना रहा डोनाल्ड ट्रंप की जीत का जश्न, जानें क्या है कनेक्शन

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अमेरिका ही नहीं बल्कि भारत के एक छोटे गांव में भी रिपब्लिकन पार्टी की चुनावी जीत का जश्न मनाया जा रहा है। यहां जश्न कोई हू हल्ला वाला नहीं है, बल्कि यहां चमक है चेहरों पर। इस खुशी का राज ये है कि इस गांव के लोगों को पता चल गया कि उनकी वंशज अमेरिका की अगली अगली ‘सेकंड लेडी’ होंगी। यानी की अमेरिका के अगले उपराष्ट्रपति जेडी वैंस की पत्नी उषा चिलुकुरी वैंस भारतवंशी हैं। उषा भारतीय मूल्यों और संस्कृति से काफी जुड़ी हुई हैं। उनकी रिश्ते में लगने वाली दादी शांतम्मा ने भी नतीजों पर खुशी जताई। उन्होंने कहा, मेरा खुश होना बनता है क्योंकि उषा हमारी परिवार की हैं।

अमेरिका के सैन डिएगो में हुआ पालन-पोषण
38 वर्षीय उषा वैंस का जन्म और पालन-पोषण अमेरिका के सैन डिएगो में हुआ है। उनके माता-पिता का पैतृक गांव आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले में वडलुरु है। पढ़ाई में होनहार छात्रा रहीं और किताबों से लगाव रखने वाली उषा ने आगे चलकर नेतृत्व के गुण दिखाए। भारत के दक्षिणी आंध्र प्रदेश राज्य में उनके पूर्वजों के गांव में रहने वाले लोगों ने प्रार्थना की है कि अब भारत और अमेरिका के ऐतिहासिक संबंधों में उनकी भूमि के जरिए और सुधार आएगा। साथ ही उम्मीद जताई है कि उषा अपने पैतृक स्थान को कुछ फायदा दिलाएंगी। रिश्ते में लगने वाली दादी प्रोफेसर सी शांतम्मा ने अमेरिकी चुनावों के बाद अपनी खुशी व्यक्त की। कहा, ‘स्वाभाविक रूप से मैं खुश हूं। वह हमारे परिवार की हैं और यह सबसे महत्वपूर्ण बात है।’ उन्होंने वैंस के साथ अपने संबंध के बारे में बताते हुए कहा, ‘मेरा उषा से रिश्ता मेरे पति की वजह से है। मेरे पति पांच भाई हैं। सबसे बड़े भाई के चार बच्चे हैं। उषा उनके एक बेटे की बेटी हैं।’ उन्होंने उषा वैंस को यह सुझाव दिया कि उन्हें किन दो क्षेत्रों में काम करने की जरूरत है। शांतम्मा ने कहा, ‘पहले भारत की मदद करें ताकि देश में खुफिया जानकारी बनी रहे। दूसरा भारत में संस्कृत के पुनरुद्धार को बढ़ावा दें।’ भारत के साथ संबंधों पर आगामी ट्रंप प्रशासन से अपेक्षाओं के बारे में पूछे जाने पर, शांतम्मा ने कहा कि सरकार को सकारात्मक विचार-विमर्श करना चाहिए और उन्हें अच्छाई को बढ़ाने का लक्ष्य रखना चाहिए। वाशिंगटन में व्हाइट हाउस से 13,450 (8,360 मील) से अधिक दूरी पर ताड़ के पेड़ों के बीच बिखरे हुए सफेद घरों वाले गांव वाडलुरु के निवासी 53 वर्षीय श्रीनिवास राजू ने कहा, ‘हमें खुशी महसूस हो रही है। हम ट्रंप का समर्थन कर रहे हैं।’ इसके अलावा, ग्रामीणों ने ट्रंप की जीत के लिए प्रार्थना की और हिंदू पुजारी अप्पाजी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि उषा वैंस भारत के लिए कुछ करेंगी। ट्रंप के लिए गणेश भगवान की मूर्ति के पास दीया जलाने के बाद भगवा वस्त्र पहने 43 वर्षीय पुजारी ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि वह हमारे गांव की मदद करेंगी। अगर वह अपनी जड़ों को पहचान सकें और इस गांव के लिए कुछ अच्छा कर सकें, तो यह बहुत अच्छा होगा।’ वडलूरु गांव से ऊषा के परदादा ने बाहर कदम रखा था। उनके पिता चिलुकुरी राधाकृष्णन ने चेन्नई में शिक्षा प्राप्त की और फिर अमेरिका में जाकर पढ़ाई पूरी की। गांव के 70 वर्षीय वेंकटा रमणय्या ने कहा, ‘हर भारतीय को गर्व है कि ऊषा भारतीय मूल की हैं। हमें उम्मीद है कि वह हमारे गांव का विकास करेंगी।’ हालांकि, उषा ने कभी गांव का दौरा नहीं किया, लेकिन पुजारी का कहना है कि उनके पिता करीब तीन साल पहले आए थे और मंदिर की स्थिति की जानकारी ली थी। रमणय्या ने कहा, ‘हमने ट्रंप का शासन देखा है बहुत अच्छा था। ट्रंप के समय में भारत-अमेरिका संबंध बहुत अच्छे रहे।’ राधाकृष्णन की शुरुआती अमेरिका यात्रा के बारे में अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन उनके पति जेडी वैंस के संस्मरण ‘हिलबिली एलिगी’ पर आधारित फिल्म में बताया गया है कि वे अमेरिका कुछ भी नहीं लेकर आए थे। उषा ने येल और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में अपनी एजुकेशन पूरी की और 2014 में जेडी वैंस से शादी की। उनके तीन बच्चे हैं। गांववासियों को ये भी उम्मीद है कि अमेरिकी-भारतीय संबंधों के सशक्त होने के साथ-साथ उनके गांव में भी कुछ सकारात्मक बदलाव आएंगे। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति की छह फीट की प्रतिमा 2019 में तेलंगाना के गांव में स्थापित की गई थी। मूर्ति स्थापित करने वाले बुसा कृष्णा का 2020 में निधन हो गया।
कमला हैरिस के गांव में भी मनाया गया जश्न
दूसरी ओर लगभग 730 किलोमीटर दूर तुळसेंद्रपुरम गांव जो कमला हैरिस के दादा-परदादा का घर रहा है, वहां भी जीत का जश्न मनाया गया। यहां के लोग कमला हैरिस को अपनी प्रेरणा मानते हैं और उनकी सफलता को लेकर गर्व महसूस करते हैं। 63 वर्षीय टी.एस. अंबारसु का कहना है कि ‘कमला हैरिस की संघर्षपूर्ण कहानी ने इस गांव की लड़कियों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया है। वह हमारे लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।’