कोरोना काल की पुरी सावधानी के साथ
गंगा सागर पर मोरारी बापू कथा गान
हमारी सनातन धर्म परंपरा में प्रत्येक तीर्थ स्थान की अपनी-अपनी महिमा है। भारतवर्ष एक ऐसा राष्ट्र है, जहां हिंदू सनातन धर्म संस्कृति की धारा सदियों से निरंतर बहती रही है।प्रकृति के तत्त्व को देवत्व स्वरूप समझकर हम हिंदुस्तानीओंने नदीयों को मां का दर्जा दिया है। हमारे देश में गंगा को सबसे पवित्र नदी के रूप में स्वीकारा गया है, जो गंगोत्री से निकलकर पश्चिम बंगाल में आकर सागर में समा जाती है। गंगा का जहाँ सागर से संगम होता है, उस स्थान को “गंगा सागर” कहते हैं। उसे “सागर- द्वीप” भी कहते हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों में इस तीर्थ की चर्चा ‘मोक्ष-धाम’ के रूप में की गई है। यहाँ मकर संक्रांति के मौके पर दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु, मोक्ष की कामना लेकर आते हैं, और सागर संगम में पुण्य की डुबकी लगाते हैं। पश्चिम बंगाल के दक्षिण २४ परगना जिले में स्थित इस तीर्थ स्थल पर कपिल मुनि का मंदिर है। कपील मुनी भगवान विष्णु के अवतार माने जाते है। जिन्होंने भगवान राम के पूर्वज और इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को अपने योगाग्नि से भस्मीभूत कर दिया था। और बाद में क्षमादान देते हुए उनका उद्धार करने हेतु राजा भगीरथ को गंगावतरण के लिए तपस्या करने का मार्ग दर्शन किया था। इसी स्थान पर गंगा मैया ने सगर पुत्रों को अपनी गोद में समाकर मोक्ष प्रदान किया था। एक समय था, जब हर किसी को यहाँ आना नसीब नहीं होता था। इसलिए एक लोकोक्ति प्रसिद्ध हुई कि- “सारे तीरथ बार बार, गंगासागर एक बार।” – हालांकि उस जमाने में वहां पहुंचना बहुत ही कठिन था। लेकिन आधुनिक परिवहन और संचार साधनों से अब यहाँ आना सुगम हो गया है।सनातन धर्म परंपरा के इस परम- पावन तीर्थ स्थान पर पूज्य मोरारी बापू के श्री मुख से रामकथा का गान होने जा रहा है। कुल कथाक्रम की ८५६वीं और गंगासागर तीर्थ धाम में होने जा रही, यह दूसरी कथा है। इस स्थल पर प्रथम कथा गान पूज्य बापू के कूल कथा क्रम की ४३४ वीं कथा का आयोजन ७ से १५ मार्च, १९९२ के दौरान हुआ था। “मानस कपिल गीता” शिर्षक अंतर्गत गाई गई उस कथा की शिर्षस्थ पंक्तियां थी –
आदि देव प्रभु दीन दयाला।
जठर धरेउ जेहिं कपिल कृपाला।। *सांख्य सास्त्र जिन्ह प्रगट बखाना। *तत्व बिचार निपुन भगवाना।। गंगा मैया और सागर देवता की संगम स्थली पर इस विषय पर सात्विक, तात्विक और वास्तविक संवाद हुआ था। तब मानो एक गंगा, जल प्रवाह के रुपमें – भगवान शिवजी की जटा से, और दुसरी “जग पावनी राम कथा” रुपी गंगा, मोरारी बापू के वाक् प्रवाह के रूप में – इस तीर्थ पर बही थी।आज २९ साल के लंबे अंतराल के बाद, फिर एक बार इस धन्य धरा को अधिक धन्यता प्रदान करने के लिए तलगाजरडी व्यासपीठ आ रही है।अभी कोरोना पुरी तरह से गया नहीं है, इस लिए निमंत्रित श्रोताओं के अलावा कृपया अन्य कोई भी श्रावक यहाँ आने का कष्ट न उठायें, ऐसी प्रार्थना आयोजक द्वारा की गई है।इस कथा के यजमान श्री अरुणभाइ श्रोफ व्यासपीठ के समर्पित फूल है। गत वर्ष अंडमान द्विप समुह पर सब से पहला कथा सत्संग हुआ, जिससे इस भूमि पर एक नया इतिहास रचाया। उस कथा के यजमान भी अरुणभैया ही थे। उन्होने बताया कि – “यहाँ पर करीबन तीन दशक पूर्व पूज्य बापू ने कथा गान किया था। इसलिये मैंने पूज्य बापू समक्ष अपना मनोरथ व्यक्त किया। आपने कृपा कि और इस पावन तीर्थस्थल पर कथा के यजमान बनने का अवसर मिला।” उन्होने गदगद् होते हुए इतना ही कहा कि -पूज्य बापु के लिए कुछ भी कहने के लिये, कोई भी शब्द नहीं है। पूज्य बापू को वर्णित नहीं किया जा सकता, महसूस किया जा सकता है।” अरुणजी ने आज तक पांच बार व्यक्तिगत तौर पर और चार बार सहयोगी के रुप में – कूल नौ बार व्यासपीठ की यजमानी करने का अवसर पाया है। अभी आगे भी – अगर व्यासपीठ की कृपा जल्दी से उतरे और यजमानी का अवसर मिले, तो कृतकृत्य होने का भाव भी आपने प्रकट किया। तलगाजरडी व्यास वाटिका के सारे फ्लावर्स पूज्य बापू के श्रीमुख से बहने वाली वचनामृत गंगा के श्रवण में डूबने के लिए उत्साहित हैं।
मनोज जोशी (महुवा)
पत्रकार – मुंबई तरंग