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केवड़ा जल पुरी, चंदन तेल-संदल जल कर्नाटक और महाराष्ट्र से मंगवाकर बना इत्र

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राज्याभिषेक के बाद प्रभु श्रीराम राजगद्दी पर बैठे, तो रामचरित मानस में बाबा तुलसीदास लिखते हैं…राम राज बैठे त्रैलोका, हर्षित भए गए सब सोका, बयरू न कर काहू सन कोई, राम प्रताप विषमता खोई। यानी, पूरे राज्य में चारों दिशाओं में राम के प्रताप से सब के मनों के भेदभाव या कुटिलता नष्ट हो गई। प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन रामलला के पूजन के लिए विशेष इत्र को भी इसी भाव से तैयार किया गया है। इत्रनगरी कन्नौज का बना यह इत्र गुरुवार को कारसेवकपुरम पहुंच गया। कन्नौज अतर्स एंड परफ्यूम्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पवन त्रिवेदी ने बताया कि भगवान को भेंट करने के लिए केवड़ा जल पुरी के जगन्नाथ मंदिर की धरती ओडिशा में तैयार कर कन्नौज लाया गया। पश्चिम व दक्षिण से चंदन तेल और संदल जल तैयार करने के लिए कर्नाटक और महाराष्ट्र से चंदन की लकड़ी मंगवाई गई। देवभूमि उत्तराखंड से जड़ी-बूटियां मंगवाकर इत्र में शामिल किया गया, ताकि सर्दी में यह इत्र भगवान को ठंड से बचाए रखे। इत्र में कन्नौज के फूल शामिल किए गए। कन्नौज से रामलला की भेंट रामसेवकपुरम पहुंच चुकी है। 40 किलो बेला व 20 किलो मेंहदी जल तैयार करने के लिए करीब पांच सौ किलो तक बेला और मेंहदी लगी है। पांच क्विंटल चंदन की लकड़ी से चंदन का इत्र और जल तैयार किया गया है। कन्नौज से भेजी गई भेंट में 200 किलो गुलाब जल, 60 किलो केवड़ा, 40 किलो बेला जल, 20 किलो खस जल, 20 किलो चंदन जल, 20 किलो मेंहदी जल, 20 किलो चंदन जल शामिल हैं। इसके अलावा इत्र में केसर, चंपा, गुलाब, केवड़ा, हिना, शमामा, बेला, मेंहदी और चंदन का इत्र भी शामिल है।

दस घंटे आग में तपकर तैयार हुआ गुलाब जल
इत्र व्यवसायी प्रभात दुबे व शिवम दुबे ने बताया कि 200 किलो गुलाब जल तैयार करने के लिए एक हजार क्विंटल फूल को बड़े भभका (एक तरह का बड़ा भगौना) में डाला जाता है। इसे एक खास तापमान पर करीब दस घंटे पकाया जाता है। आसवन विधि से यह दूसरी डेग में पहुंचता है। फिर इसे दस घंटे तक ठंडा किया जाता है। इसके बाद गुलाब जल तैयार होता है। एक अन्य इत्र व्यवसायी कन्हैया दीक्षित ने बताया कि करीब पांच क्विंटल पकी हुई मिट्टी से इसी विधि से मिट्टी का इत्र तैयार किया गया।