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‘कोविड महामारी के बाद भी भारत के इस्पात क्षेत्र में हो रहा सुधार’, टाटा स्टील के CEO का दावा

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टाटा स्टील के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और प्रबंध निदेशक टी वी नरेंद्रन ने सोमवार को कहा कि देश में इस्पात क्षेत्र कोविड महामारी के बाद अब भी सुधार के दौर में है। उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचे के विकास पर सरकार के फोकस करने से इस्पात की मांग बढ़ती रहेगी। नरेंद्रन ने यहां कहा, ‘यह (साल 2023) भारत में इस्पात क्षेत्र के लिए अच्छा साल रहा है। जबकि, यह वैश्विक स्तर पर एक चुनौतीपूर्ण दौर था।’ उन्होंने कहा, ‘वैश्विक महामारी के बाद इस्पात उद्योग में सुधार अब भी जारी है। वास्तव में, आरबीआई द्वारा व्यष्टि अर्थव्यवस्था (माइक्रो-इकोनॉमी) को अच्छी तरह से संभालने और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए किए गए निवेश के कारण हम अच्छी तरह से उबर गए हैं।’ उन्होंने चीन से इस्पात के बढ़ते आयात की आशंका जताते हुए कहा कि 2023 में इस्पात की मांग 10-12 फीसदी बढ़ी और यह प्रवृत्ति जारी रहनी चाहिए। नरेंद्रन ने कहा, चीन हर महीने (2023 में) 80 लाख टन इस्पात का निर्यात कर रहा है। जो 2015 के बाद से सर्वाधिक है।  इसका अंतरराष्ट्रीय इस्पात कीमतों के साथ-साथ लाभप्रदता पर भी प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि टाटा स्टील को अपनी बाजार हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए हर साल अपनी क्षमता 10 से 20 लाख टन बढ़ानी होगी। इससे पहले अगस्त 2023 में नरेंद्रन ने कहा था कि कंपनी भारत में 2030 तक अपनी वार्षिक इस्पात बनाने की क्षमता को 40 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) तक बढ़ाने की योजना बना रही है, जो वर्तमान में लगभग 22 मिलियन टन प्रति वर्ष है। नरेंद्रन ने कहा कि इस्पात कंपनी 2024 में ओडिशा के कलिंगनगर संयंत्र में कई संयंत्र लगाएगी, ताकि उसकी क्षमता 30 लाख टन से बढ़कर 80 लाख टन हो सके। टाटा स्टील की योजना हर साल विस्तार गतिविधियों के लिए 10 हजार करोड़ रुपये निवेश करने की है। उन्होंने कहा, हम जमशेदपुर में इंडियन स्टील एंड वायर प्रोडक्ट्स (आईएसडब्ल्यूपी) सहित डाउनस्ट्रीम संयंत्रों में भी निवेश कर रहे हैं और टिनप्लेट कंपनी ऑफ इंडिया की क्षमता को दोगुना कर रहे हैं। नरेंद्रन ने कहा, हम अपनी प्रक्रिया को स्वच्छ और हरित (क्लीन एंड ग्रीन) बना रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शहर (जमशेदपुर) में अधिक मूल्य वर्धित विकास हो। नरेंद्रन ने कहा, ‘टाटा स्टील की खदानों की नीलामी 2030 में होगी। तब तक हमारी प्रतिस्पर्धा भी बढ़ती रहनी चाहिए, क्योंकि 2030 के बाद हमें बाजार मूल्य पर कच्चा माल खरीदना होगा। इसलिए, हम जमशेदपुर और अन्य स्थानों पर काम कर रहे हैं ताकि बाजार की प्रतिस्पर्धा से निपटने के लिए खुद को तैयार कर सकें।’