लद्दाख में चीन के साथ जारी सीमा तनाव काफी पुराना है। इस पर विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है कि चीन को सीमा प्रबंधन समझौतों का पालन करना चाहिए। भारत-चीन संबंधों में सुधार के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति होनी चाहिए। मोदी सरकार सीमा पर बुनियादी सुविधा को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसके अलावा, जयशंकर ने राष्ट्रीय शक्ति के विकास को अधिक महत्वपूर्ण बताया है। थिंकटैंक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों ने भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों का उतना प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया, जितना अधिक किया जा सकता था। शक्तियां संतुलन बनाती हैं। शक्तियां जमीन पर रहती हैं। फैंसी बयानों से कुछ नहीं होता। सरकारों को कठिन काम करना पड़ता है। संसाधन लगाना होता है। सिस्टम को आगे बढ़ाना होता है। जमीन पर काम करना होता है। निगरानी करना पड़ता है। मोदी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में सीमा पर बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय वृद्धि की है। उन्होंने कहा कि चीन सीमा क्षेत्रों पर 2014 तक हमारी बजटीय प्रतिबद्धता 4000 करोड़ रुपये से कम थी। लेकिन आज यह साढ़े तीन या चार गुना अधिक है। सीमा पर सड़कों, सुरंगों और पुलों के निर्माण में तेजी से वृद्धि हुई है। अगर 10 साल में ऐसा किया जा सकता है तो पहले क्यों नहीं किया गया। मई 2020 में चीन की सैन्य घुसपैठ के चलते गलवान घाटी में विवाद बढ़ा, जो दशकों में भारत और चीन के बीच सबसे गंभीर सैन्य विवाद था। चीनी सेना के मुताबिक, दोनों पक्ष अब तक चार बिंदुओं गलवान घाटी, पैंगोंग झील, हॉट स्प्रिंग्स और जियानान दबन (गोगरा) पर पीछे हटने पर सहमत हुए हैं, जिससे सीमा पर तनाव कम करने में मदद मिलेगी। लेकिन देपसांग और डेमचोक में एक समान समझौते पर पहुंचने को लेकर बातचीत में गतिरोध आ गया, जहां भारतीय पक्ष ने दो लंबित मुद्दों के समाधान के लिए दबाव डाला।
पाकिस्तान पर साधा निशाना