उत्तर प्रदेश के चुनाव से पहले पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के नाम का जिन्न एक बार फिर निकल आया है। पिछले दिनों सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के मौके पर एक कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने मोहम्मद अली जिन्ना का नाम पटेल, नेहरू और गांधी के साथ लिया था। उन्होंने कहा था कि इन सभी ने एक ही कॉलेज से बैरिस्टरी की और देश को आजाद कराने में योगदान दिया था। उनके इस बयान के बाद से विवाद छिड़ गया था और जिन्ना का नाम लिए जाने पर भड़की भाजपा ने उनकी मानसिकता को तालिबानी बता दिया था। खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस पर हमला बोलते हुए कहा था कि भारत में जिन्ना वाली सोच नहीं चलेगी।
काउंटर पोलराइजेशन से सपा को है फायदे की उम्मीद?
दरअसल जिन्ना का नाम लेने से भाजपा को लाभ मिलने की बात की जा रही है, लेकिन ध्रुवीकरण की स्थिति में सपा भी शायद पीछे न रहे। इसकी वजह यह है कि भले ही जिन्ना के नाम से भारतीय मुस्लिमों को कोई मतलब न हो, लेकिन उनके नाम पर यदि ध्रुवीकरण होता दिखता है तो उसका असर काउंटर पोलराइजेशन के तौर पर जरूर दिख सकता है। ऐसे में कहा यह भी जा रहा है कि शायद मुस्लिमों का ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल करने के लिए समाजवादी पार्टी ने यह रणनीति बनाई है। दरअसल प्रदेश की करीब 100 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिमों मतों का हेरफेर पूरी चुनावी सियासत की दिशा तय कर सकता है। यही वजह है कि जिन्ना पर अखिलेश यादव के बयान को भाजपा के ट्रैप में फंसने की बजाय रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
बयान पर सफाई देने से इनकार ने और बढ़ाए कयास
अखिलेश यादव से बीते सप्ताह जब यह पूछा गया कि क्या वह जिन्ना वाले बयान पर सफाई देंगे तो उन्होंने कहा कि मैं ऐसा क्यों करूं। अखिलेश यादव ने कहा था, मुझे संदर्भ क्यों साफ करना चाहिए? मैं चाहता हूं कि लोग फिर से किताबें पढ़ें। अखिलेश यादव ने यूपी चुनाव को जिक्र करते हुए कहा कि सीएम योगी आदित्यनाथ को 2022 में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहिए क्योंकि वह इस बार हारने वाले हैं। उनके इस बयान से साफ था कि जिन्ना वाले अपने बयान को वह दूर तलक जाने देना चाहते हैं ताकि ध्रुवीकरण की स्थिति बने तो वह एकमुश्त मुस्लिम वोट हासिल कर सकें। बसपा और कांग्रेस भी इस वोट बैंक के दावेदार रहे हैं। ऐसे में यदि मुस्लिमों वोटों का बड़ा हिस्सा सपा की ओर जाता है तो वह निश्चित ही भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में सबसे आगे होगी।