गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बना झूलता हुआ पुल देखते ही देखते काल बन गया। पुल पर चढ़े लोग कुछ समझ पाते तब तक सैकड़ों लोग पानी में डूबने लगे। जो बचे वह घंटों टूटे हुए पुल के सहारे खड़े रहे। बचाव टीमों ने आकर उन्हें निकाला। झूलता पुल देखते ही देखते काल बन गया। लोग कुछ समझ पाते तब तक सैकड़ों लोग नदी में डूबने लगे। चश्मदीदों ने बताया, भारी भीड़ सेे पहले पुल हिला, फिर लटका और भरभराकर गिर गया। इसके साथ ही चीखते लोग नदी में समाने लगे। एक चश्मदीद ने दावा किया कि झूल रहे पुल को कुछ युवकों ने तोड़ने की कोशिश की। इस घटना का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें कुछ युवक पुल पर जोर-जोर से पैर मारते नजर आ रहे हैं। अहमदाबाद के विजय गोस्वामी ने बताया, वह परिवार के साथ पुल पर घूमने के लिए गए थे, लेकिन वहां भीड़ में कुछ युवकों ने पुल को जोर-जोर से हिलाना शुरू कर दिया था। इससे लोगों का चलना मुश्किल हो गया। उन्हें लगा कि यह खतरनाक साबित हो सकता है, इसलिए वह परिवार के साथ वापस लौट आए। कुछ घंटे बाद विजय का डर सही साबित हुआ, जब मच्छु नदी पर हादसे की सूचना मिली। वहीं, एक चश्मदीद ने बताया, पुल पर भारी भीड़ थी। ऐसा लग रहा था कि लोग एक दूसरे पर चढ़े जा रहे हैं। हर कोई मोबाइल में तस्वीरें कैद करना चाह रहा था इसलिए वे पुल के बीचोबीच जाने की कोशिश कर रहे थे। कई लोग इस जद्दोजहद में धक्का-मुक्की भी कर रहे थे। पुल के बीच में बहुत ज्यादा भीड़ हो गई और उसी जगह से पुल टूट गया। इस झुलते हुए पुल पर जाने के लिए टिकट लेना पड़ता था। जिस समय यह हादसा हुए उस वक्त लोगों की लंबी कतार टिकट काउंटर पर लगी हुई थी। कुछ लोग टिकट लेकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। पुल की देखरेख की जिम्मेदारी ओरेवा ग्रुप के पास है। इस ग्रुप ने मार्च 2022 से मार्च 2037 यानी 15 साल के लिए मोरबी नगर पालिका के साथ एक समझौता किया है। ग्रुप के पास ब्रिज की सुरक्षा, सफाई, रखरखाव, टोल वसूलने, स्टाफ का प्रबंधन है।
इन सवालों के जवाब मिलने बाकी
एनओसी के बिना पुल क्यों खोला?
किसकी मंजूरी से खोला गया पुल?
पुल पर क्षमता से अधिक लोग कैसे पहुंचे?
भीड़ नियंत्रण के क्या थे उपाय?
छठ पर क्या विशेष प्रबंध थे?
मोरबी के राजा ने बनवाया था
मोरबी के राजा वाघजी रावाजी ठाकोर ने झूलता पुल बनवाया था। इसका 20 फरवरी 1879 को उद्घाटन किया गया। ब्रिटिश इंजीनियरों द्वारा बनाए इस पुल के निर्माण में आधुनिकतम तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। लंबे समय तक इसे अच्छी इंजीनियरिंग का प्रतीक माना जाता रहा। 765 फुट लंबा, चार फुट चौड़ा यह पुल बेजोड़ इंजीनियरिंग और ऐतिहासिकता के कारण गुजरात टूरिज्म की सूची में शामिल किया गया था। पुल का एक हिस्सा नदी के किनारे की तरफ आकर गिरा जबकि दूसरा हिस्सा नदी के बीचो-बीच जाकर गिरा। चश्मदीदों ने बताया कि दूसरे हिस्से के छोर में गिरे लोगों की ज्यादा मौत हुई है क्योंकि उन्हें गहरी नदी से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला। पुरुष किसी तरह बाहर निकले लेकिन महिलाएं व बच्चे नहीं निकल सके। इसलिए मरने वालों में सबसे ज्यादा महिलाएं और बच्चे ही हैं। केबल पुल टूटने के दौरान कई तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं। इनमें देखा जा सकता है, हादसे के बाद कई लोग टूटे पुल को पकड़ कर लटके रहे। जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में तार पकड़ कर और पुल के टूटे हिस्से के सहारे किसी तरह बाहर आने की कोशिश करते दिखे।
पुल हिला, फिर लटका और भरभराकर गिरा, लोग नदी में समाते गए
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