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फिर गरमा रही महाराष्ट्र की सियासत…मराठा कोटा मुद्दे पर मौन क्यों है मोदी सरकार?

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नई दिल्ली, मराठा आरक्षण मुद्दे को लेकर एक बार फिर महाराष्ट्र में सियासत गरमा रही है। वहां जून के पहले हफ्ते में आंदोलन की योजना बनी है। मराठा कोटा पर राज्य सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट से रद्द किए जाने के बाद गेंद केंद्र सरकार के पाले में आ गई है। सीएम उद्धव ठाकरे अब केंद्र सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि वह इस मुद्दे पर पहल करे। सीएम का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने तो राज्य सरकार के हाथ बांध दिए हैं, इसलिए केंद्र सरकार ने जैसे अनुच्छेद 370 के मामले में आगे बढ़कर फैसला लिया, वैसे ही मराठा कोटा पर भी बढ़ाए। उन्होंने पीएम को पत्र भी लिखा है। उधर, केंद्र सरकार अपने सिर पर मुसीबतों की टोकरी नहीं रखना चाहती। वह चाह रही है कि इस विवाद का हल कोर्ट के जरिए ही सामने आए।
केंद्र सरकार की झिझक की वजह
केंद्र सरकार की दिक्कत यह है कि अगर वह इस पर फैसला लेती है तो उसका असर सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहेगा। दूसरे राज्यों में कई समुदायों को कोटे की मांग उठ रही है, जिसमें जाट, गुर्जर और पटेल शामिल हैं। केंद्र अगर 102वें संशोधन के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करता है तो उसे दूसरे राज्यों से भी इसी तरह की मांगों का सामना करना पड़ेगा। गुजरात में पटेल, हरियाणा में जाट और कई राज्यों में गुर्जर समुदाय खुद को पिछड़ों में रखकर कोटे की मांग कर रहे हैं। बीजेपी के लिए यह मामला सियासी भी है। अब तक जिन भी राज्यों से आरक्षण की मांग उठी है, वहां बीजेपी के सियासी हित जुड़े हैं, वह चाहे गुजरात हो, महाराष्ट्र, हरियाणा, यूपी और राजस्थान। वह इन सूबों में चुनौती मोल नहीं लेना चाहती। इसके अलावा, एक हिचकिचाहट यह भी है कि अगर केंद्र मराठा कोटे का समर्थन करता है तो उसे पिछड़ों की नाराजगी झेलनी होगी। वे देश की कुल आबादी का एक अच्छा-खासा हिस्सा हैं। वहीं मराठा 32 फीसदी हैं।
मामला यह है
नवंबर 2018 में जब महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन सरकार चला रहे थे तो उन्होंने राज्य विधानसभा के जरिए एक अधिनियम पारित कर मराठों के लिए कोटे का प्रावधान कर दिया था। अधिनियम को जायज ठहराते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने शिक्षा में 12 और नौकरियों में 13 प्रतिशत कोटे को अनिवार्य मान लिया था। लेकिन इससे कुल आरक्षण 64 और 65 प्रतिशत पहुंच गया, जो मंडल आयोग के निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। पांच मई को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने फैसला दिया कि महाराष्ट्र में ऐसे कोई ‘असाधारण हालात’ नहीं हैं, जिसके लिए मराठों को कोटे के लिए 50 प्रतिशत की सीमा से आगे बढ़ने की जरूरत थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी जाति को आरक्षण के दायरे में लाना या उससे निकालने की शक्ति राष्ट्रपति यानी केंद्र में निहित है। इसी के मद्देनजर उद्धव केंद्र पर दबाव बना रहे हैं। वह समझ रहे हैं कि बीजेपी ऐसा नहीं करना चाहेगी। वह इसे भी अपने सियासी हक में प्लस मान रहे हैं।

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