कांग्रेस पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की जोड़ी फ्रंटफुट पर खेल रही है। इसकी एक झलक बिहार की राजधानी पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक के दौरान और उससे पहले दोनों नेताओं के बयान में दिखाई पड़ी है। हालांकि इससे पहले हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी यह जोड़ी कमाल दिखा चुकी है। ‘विपक्षी’ दलों की बैठक में भी दोनों नेताओं की ‘जुगलबंदी’ नजर आई।
कांग्रेस की कार्यशैली और नेतृत्व क्षमता सहित पार्टी के कई घटनाक्रमों को अपनी पुस्तक में जगह दे चुके रशीद किदवई कहते हैं, यह जोड़ी कांग्रेस की बैंच स्ट्रेंथ को दर्शाती है। राहुल गांधी ने पटना की बैठक से पहले कहा, हम सब मिलकर ‘मोदी’ से लड़ेंगे। कांग्रेस का मतलब देश के गरीबों के साथ खड़े होना और उनके लिए काम करना है। दूसरी तरफ जब अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी दलों की बैठक से पहले ‘अध्यादेश’ पर चर्चा करने की शर्त रखी तो मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने कई दशकों के अनुभव का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा, अध्यादेश का विरोध सदन में होता है, लेकिन इसका प्रचार बाहर नहीं होना चाहिए। केजरीवाल इसका बाहर इतना प्रचार क्यों कर रहे हैं। सदन में अध्यादेश पर बात होनी चाहिए। रशीद किदवई ने बताया, गत वर्ष जब खरगे ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का पदभार संभाला तो उससे पहले वे पार्टी की पहली पसंद नहीं थे। अध्यक्ष पद के लिए अशोक गहलौत का नाम चला, बीच में दिग्विजय सिंह भी कूदे और उसके बाद शशि थरुर आए। अंत में खरगे को पार्टी की कमान सौंपी गई। जब उन्होंने कार्यभार संभाला तो कुछ लोगों ने कहा, वे ‘रबड़ स्टैंप’ बन कर रहेंगे। हालांकि बाद में ऐसा कुछ नहीं हुआ। मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी के संगठनात्मक मामलों में पूरी छूट मिली है। कांग्रेस पार्टी को मालूम है कि खरगे जिस समुदाय/वर्ग से आते हैं, राजनीति में उसकी कितनी भूमिका है। कर्नाटक चुनाव में खरगे ने मोदी की तर्ज पर कहा था, जैसे प्रधानमंत्री कहते हैं कि मैं गुजरात का बेटा हूं, वैसे ही मैं कर्नाटक का बेटा हूं। कांग्रेस पार्टी ने एक वंचित एवं शोषित वर्ग से आने वाले नेता को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है। पार्टी को खरगे के लंबे अनुभव का फायदा भी मिला है। खरगे के पार्टी अध्यक्ष बनने से पहले कांग्रेस को मुश्किल दौर से गुजरना पड़ा। पार्टी के भीतर ही असंतुष्ट नेताओं का समूह ‘जी23’ खड़ा हो गया। कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। कुछ राज्यों में पार्टी के असंतुष्ट नेताओं ने विरोध का झंडा उठा लिया। राहुल गांधी की यात्रा और खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में चल रही अंदरुनी खींचतान, काफी हद तक कम हो गई। भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी, न केवल पार्टी में, बल्कि विपक्षी दलों के बीच एक कद्दावर नेता की तरह स्थापित हो गए। बतौर रशीद किदवई, सचिन पायलट ने जब तीखे तेवर दिखाए तो खरगे ने उन्हें तर्क देकर समझाया कि मुझे देखो, मैं 1999, 2004 और 2013 में मुख्यमंत्री बनते बनते रह गया। पार्टी में उनका कहा माना जाता है। वे कांग्रेस अध्यक्ष पद की गरिमा का पूरी तरह से निर्वाह कर रहे हैं। रिमोट कंट्रोल वाले अध्यक्ष, अब उन्हें लेकर यह बात भी नहीं कही जाती। परिपक्वता और अनुभव के बलबूते, विपक्षी दलों के बीच उनकी बात सुनी जाती है।
राहुल चुप तो खरगे बोले, यह है जुगलबंदी
खरगे, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। अध्यादेश या दूसरे मुद्दे पर सदन में उनकी अहम भूमिका रहती है। कांग्रेस पार्टी को मालूम है कि अरविंद केजरीवाल के बयान पर किस नेता को जवाब देना है। गुरुवार को अरविंद केजरीवाल की पार्टी की तरफ से यह बयान आ गया कि विपक्षी दलों की बैठक में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र सरकार के अध्यादेश पर चर्चा होगी। विपक्षी दलों को इस विषय पर अपना रुख स्पष्ट करना होगा। अगर विपक्षी दलों की बैठक में सबसे पहले इस मुद्दे पर चर्चा नहीं होती है तो आम आदमी पार्टी, बैठक से वॉक आउट करेगी। इस बाबत मल्लिकार्जुन खरगे ने दो टूक जवाब दिया। उन्होंने कहा, अध्यादेश का विरोध तो सदन में होता है। अभी से इसका प्रचार क्यों हो रहा है। विपक्ष को मिलकर, भाजपा के खिलाफ लड़ना है। रशीद किदवई के मुताबिक, अभी इस जोड़ी को बहुत कुछ स्थापित करना है। पहला तो यही है कि 2024 में कम से कम डेढ़ सौ सीटों तक कांग्रेस पार्टी को ले जाया जाए। यह जोड़ी उस ओर बढ़ भी रही है। पटना में पार्टी कार्यकर्ताओं को राहुल गांधी ने ‘बब्बर शेर’ कहा है। राहुल बोले, पूरा देश समझ गया है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा का मतलब सिर्फ दो-तीन लोगों को फायदा पहुंचाना है। कांग्रेस का मतलब देश के गरीबों के साथ खड़े होना और उनके लिए काम करना है। कर्नाटक में जब कांग्रेस पार्टी एक साथ खड़ी हुई तो भाजपा गायब हो गई। अब आगे तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी कांग्रेस जीतेगी। अगर राहुल और केजरीवाल के बीच ज्यादा संवाद नहीं है तो वह कमी खरगे पूरी कर देते हैं। उनका आप सांसद संजय सिंह के साथ अच्छा तालमेल है। अन्य विपक्षी दल भी उनकी बात पर गौर करते हैं। खरगे, पार्टी के मूल्यों और सिद्धांतों में सधे हुए हैं। राहुल गांधी भी भारत जोड़ो यात्रा के बाद राजनीति में स्थापित हो चुके हैं। जनता के बीच उनकी लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ा है। वे जिस तरह से खुद को लोगों के बीच ले जा रहे हैं, उससे उनकी ऐसी छवि बनी है कि उन्हें सत्ता का लालच नहीं है।
फ्रंटफुट पर खेल रही ‘खरगे-राहुल’ की जोड़ी, ‘विपक्षी’ दलों की बैठक में नजर आई ये ‘जुगलबंदी’
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