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बीजेपी ने कहा, केजरीवाल को इस ‘काबिल’ नहीं समझती कांग्रेस

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सिद्धारमैया के आज होने वाले शपथ ग्रहण में विपक्ष के 22 दलों को न्योता भेजा गया है। इसमें सपा, आरजेडी, शिवसेना और तृणमूल कांग्रेस जैसे सभी बड़े दल शामिल हैं। कांग्रेस इसे 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की एक बड़ी तस्वीर के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है। लेकिन कांग्रेस ने इस बेहद महत्त्वपूर्ण समझे जा रहे कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल को अब तक न्योता नहीं भेजा है। इसमें आम आदमी पार्टी और केसीआर की भारत राष्ट्र समिति भी शामिल है। क्या इन दलों को साथ लिए बिना कांग्रेस का लक्ष्य पूरा हो सकता है? भाजपा ने आम आदमी पार्टी को न बुलाए जाने पर चुटकी ली है। पार्टी ने कहा है कि कांग्रेस  अरविंद केजरीवाल को इस काबिल ही नहीं समझती कि उन्हें कार्यक्रम में बुलाया जाए। दरअसल, कांग्रेस ने जिन दलों को अभी तक न्योता नहीं भेजा है, उनमें प्रमुख तौर पर वही दल शामिल हैं जिनकी कांग्रेस से सीधी टक्कर है। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस की जमीन छीनकर ही दिल्ली में अपनी जमीन बनाई है। पंजाब में भी यही कहानी दोहराई गई थी। आम आदमी पार्टी ने गुजरात और गोवा में भी कांग्रेस के वोटों का बंटवारा कर लिया जिससे पार्टी कमजोर पड़ गई और इसका सीधा लाभ भाजपा को मिला। इतना ही नहीं, अरविंद केजरीवाल अपने राजनीतिक बयानों में आम आदमी पार्टी को भाजपा का स्वाभाविक विकल्प बताते रहे हैं। उनकी कोशिश है कि आम आदमी पार्टी को पूरे देश में भाजपा के विकल्प के रूप में पेश किया जाए। आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की यह इच्छा कांग्रेस के बूते ही परवान चढ़ सकती है। संभवतः यही कारण है कि कांग्रेस अरविंद केजरीवाल को अपने साथ रखने में हिचक रही है। हालांकि, केजरीवाल को साथ लेने में इस हिचक के बीच बीते संसद सत्र के दौरान कई अवसर ऐसे सामने आए थे जिनमें सरकार का विरोध करने के लिए आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह कांग्रेस के साथ मिलकर खड़े दिखाई पड़े थे। ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि विपक्षी एकता को लेकर अभी शुरुआती समय माना जाना चाहिए। समय के साथ अन्य दलों के साथ तालमेल बिठाने के फॉर्मूले खोजे जा सकते हैं। जिस तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित तमाम विपक्षी दलों से मिलकर एकता बनाने की कोशिश कर रहे हैें, उसका परिणाम कुछ समय बाद सामने आ सकता है। उस विपक्षी एकता के गुलदस्ते में कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी और केसीआर भी आ सकते हैं। आम आदमी पार्टी के एक नेता ने अमर उजाला से कहा कि कांग्रेस अब हमारे ही मुद्दे के सहारे विभिन्न राज्यों में खड़ी होने की कोशिश कर रही है। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में भी उसने मुफ्त बिजली, बेरोजगार युवाओं को भत्ता जैसे मुद्दे उठाकर ही लोगों का भरोसा जीत रही है। लेकिन अभी से कांग्रेस नेता इन वादों पर खरे उतरने से पीछे हटने लगे हैं, जबकि आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब में लगातार अपने एक के बाद एक वादे पूरे करती जा रही है। नेता के मुताबिक, जनता की दृष्टि मेंं जिसकी विश्वसनीयता ज्यादा होगी, वही सफल होगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि, लेकिन सभी विपक्षी दलों का पहला कर्तव्य बनता है कि वे साथ आकर केंद्र सरकार को 2024 में चुनौती दें। इसके लिए जिस तरह ममता बनर्जी ने फॉर्मूला पेश किया है, उसके अंतर्गत चलते हुए कांग्रेस को सभी दलों को साथ लेने की कोशिश की जानी चाहिए।

भाजपा नेता ने ली चुटकी
दिल्ली भाजपा नेता हर्ष मल्होत्रा ने अमर उजाला से कहा कि अरविंद केजरीवाल अपनी कथनी-करनी में जमीन-आसमान का अंतर होने के कारण जनता के बीच विश्वसनीयता खो चुके हैं। अब वे राजनीतिक दलों के बीच भी अस्वीकार्य होते जा रहे हैं। इसका बड़ा कारण है कि वे आज कुछ कहते हैें और कल अपनी ही बात से मुकर जाते हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता हर्ष मल्होत्रा ने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने पहले लालू यादव को भ्रष्टाचारी बताया और बाद में उन्हीं के साथ खड़े हो गए। इसी तरह पहले शीला दीक्षित को भ्रष्टाचारी बताया और बाद में उसी कांग्रेस से गठबंधन करने लगे। उन्होंने कहा कि इस समय कांग्रेस से दूरी दिखाने वाले अरविंद केजरीवाल कल लोकसभा चुनाव में उनके साथ खड़े होकर चुनाव लड़ते हुए दिखाई पड़ेंगे। उन्होंने कहा कि अपनी इसी कथनी-करनी के अंतर के कारण केजरीवाल अब जनता के साथ-साथ राजनीतिक दलों के बीच भी अस्वीकार्य होते जा रहे हैं।
राजनीति में स्थाई मित्र-शत्रु नहीं
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडेय ने अमर उजाला से कहा कि राजनीति में कोई स्थाई मित्र या शत्रु नहीं होता। विपक्षी दलों की एकता पर ममता बनर्जी ने कई बार अपना स्टैंड बदला है। एक बार फिर वे विपक्षी खेमे में खड़ी होती हुई दिखाई पड़ रही हैं। इसी प्रकार शरद पवार के कई बयान उनकी पार्टी के अंतिम स्टैंड को लेकर लोगों के बीच भ्रम पैदा करते हैं। ऐसे में विपक्षी एकता में आम आदमी पार्टी शामिल होगी या नहीं, इस पर अभी अंतिम रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन जिस तरह आम आदमी पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस से मिलकर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन कांग्रेस ने उस फॉर्मूले को इनकार कर दिया. आगामी लोकसभा चुनाव में भी दोनों के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश की जा सकती है। राहुल गांधी अब जिस तरह परिपक्व राजनीति का परिचय दे रहे हैें, उसमें दोनों दलों के बीच कोई समझौते का फॉर्मूला निकल आए तो इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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