कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए है। राज्य में कांग्रेस ने दमदार तरीके से वापसी की है। इस चुनाव में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ही कुछ फार्मूेले को अपनाया, जिससे उसे इन चुनावों में जीत हासिल करने में आसानी हुई। पार्टी ने भाजपा की तर्ज पर जिला और बूथों पर न केवल कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी तय की बल्कि समाज में सम्मेलन आयोजित किए। पार्टी ने सभी 224 सीटों पर भाजपा के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा निकाली। पूरे चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। वे पूरे समय कर्नाटक में बने रहे। राज्यभर में बड़ी रैलियों के साथ-साथ गांवों में नुक्कड़ सभाएं तक कीं। इसके अलावा, उन्होंने प्रदेश में जीत हासिल करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार, प्रचार समिति के अध्यक्ष एमबी पाटिल, विधानसभा में विपक्ष के नेता बीके हरिप्रसाद, सीडब्ल्यू मेंबर के एच मुनियप्पा और पूर्व डिप्टी सीएमजी परमेश्वर की अलग-अलग टीमें बनाई। सभी नेताओं को अलग-अलग क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी। खरगे ने सभी नेताओं से एक बैठक में कहा था कि चुनाव में हमारी नजर ‘मछली की आंख’ (जीत) पर होनी चाहिए। इसलिए शुरुआत से ही पार्टी ने किसानों के मुद्दे उठाए। बसवराज बोम्मई की मौजूदा सरकार की कमियों पर फोकस किया। भाजपा को दो मुख्यमंत्री बदलने पड़े, इसके पीछे की कहानी को भ्रष्टाचार की चासनी के साथ पेश किया गया। कांग्रेस ने भाजपा की तरह अपने नेताओं को हिदायत दी थी कि चुनाव प्रचार के दौरान नेता हर विधानसभा क्षेत्र के प्रसिद्ध मंदिर में जाएं। इसके अलावा मठ में रात बिताएं। वहां के प्रमुख संतों से मुलाकात करें। प्रचार अभियान के दौरान समाज में रुतबा रखने वाले व्यक्तियों के साथ संवाद करें। पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं और स्टार प्रचारकों को छोटे कार्यकर्ताओं के घर खाना खाने से लेकर हर विधानसभा क्षेत्र की प्रसिद्ध फूड शॉप पर जाकर लोगों से मुलाकात करने के निर्देश दिए थे। इसी प्लान के तहत कांग्रेस नेता राहुल गांधी बेंगलुरु के जेपी नगर स्थित नंदिनी मिल्क पार्लर पहुंचे थे। यहां से उन्होंने एक आइसक्रीम खरीदी और ब्रांड को कर्नाटक का गौरव करार दिया। पूरे प्रचार के दौरान कांग्रेस ने भ्रष्टाचार को अहम मुद्दा बनाए रखा। कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ शुरू से ही ’40 फीसदी पे-सीएम करप्शन’ का एजेंडा सेट किया और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया। करप्शन के मुद्दे पर एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा। प्रचार में कांग्रेस ने अपने परंपरागत वोट बैंक पर फोकस रखा। पार्टी दलित, आदिवासी, मुस्लिम और वोक्कालिगा समुदाय को जोड़ने में कामयाब रहीं। पार्टी ओबीसी से लिंगायत समुदाय के वोट बैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही। चुनाव में कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों को ही फोकस में रखा। भाजपा ने पूरी कोशिश की थी कि चुनाव में ध्रुवीकरण का मुद्दा चल जाए। इसलिए, बजरंग दल को बजरंग बलि से जोड़ा गया। लेकिन, कांग्रेस ने भाजपा के सभी दांवों को अपनी रणनीति से विफल करने का काम किया। भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, जातीय जनगणना की बात की। इसके अलावा, चुनावी घोषणा पत्र में उन चुनावी गारंटियों का एलान किया गया जिसका सीधा वास्ता प्रदेश की जनता से था।
बूथ, मठ-मंदिर से लेकर स्ट्रीट फूड तक, जीत के लिए BJP के इन फार्मूलों पर चली कांग्रेस
83