ओडिशा का पुरी शहर इन दिनों आस्था के सागर में गोते लगा रहा है। दरअसल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जा रही है और लाखों की संख्या में भक्त पुरी पहुंचे हुए हैं। गुरुवार को भगवान जगन्नाथ, भगवान बालभद्र और देवी सुभद्रा को राजाराजेश्वरी बेशा में सजाया गया। इस परंपरा को सुना बेशा भी कहा जाता है। हालांकि सुना बेशा परंपरा के दौरान भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन को पुराने आभूषणों से सजाने पर भक्तों में नाराजगी दिखी। भगवान जगन्नाथ के बड़ाग्राही जगन्नाथ स्वेन महापात्रा ने भी सुना बेशा परंपरा के दौरान भगवान और उनके भाई-बहनों को पुराने आभूषण से सजाने पर नाराजगी जाहिर की। गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ के रत्न भंडार में 12वीं सदी के बहुमूल्य आभूषण रखे हुए हैं। इसके बावजूद भगवान को पुराने आभूषणों से सजाना लोगों का नाराज कर गया है। स्वेन महापात्रा ने ओडिशा सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि बड़ी संख्या में भक्त भगवान जगन्नाथ को सोना दान करना चाहते हैं और पुराने आभूषणों से ही भगवान के लिए 10-12 सेट आभूषण तैयार हो सकते हैं लेकिन इसके बावजूद भगवान को पुराने आभूषण पहनाना निंदनीय है। साल 1460 में राजा कपिलेंद्र देब ने कई राज्यों को जीतकर भगवान जगन्नाथ को सोने के आभूषण अर्पित किए थे। उसके बाद से ही जगन्नाथ मंदिर में सुना बेशा की परंपरा चली आ रही है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में सुना बेशा की परंपरा काफी प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि राजा कपिलेंद्र देब के शासनकाल में सुना बेशा परंपरा के दौरान भगवान को 138 डिजाइन के सोने के आभूषण पहनाए जाते थे लेकिन इन दिनों यह घटकर सिर्फ 35 डिजाइन के आभूषण रह गए हैं। इन आभूषणों का वजन करीब 208 किलो है। लोगों में नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार को बीते चार दशकों से नहीं खोला गया है। जगन्नाथ मंदिर, ओडिशा सरकार के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
भगवान जगन्नाथ को ‘सुना बेशा’ परंपरा के दौरान पहनाए गए पुराने आभूषण, 40 साल से नहीं खुला रत्न भंडार
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