भाजपा को महाराष्ट्र में सरकार बनाने का दावा पेश करने की कोई जल्दी नहीं हैं, वह तब तक इंतजार करेगी जब तक कि शिवसेना में गड़गड़ाहट शहरों में नगर निगमों और कस्बों व जिलों में नगर निकायों के स्तर पर ताकत असर न कर ले। एक भाजपा नेता ने यह दावा किया। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि महाराष्ट्र में मौजूदा सत्ता संघर्ष केवल राज्य में सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं है, बल्कि शिवसेना के समर्थकों को पार्टी से दूर करने और हिंदुत्व के मुद्दे पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए भाजपा का एक ठोस प्रयास है। भाजपा नेता ने आगे कहा कि इस दिशा में पहला कदम बालासाहेब ठाकरे के आदर्शों को बनाए रखने का संकल्प लेकर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के खेमे को मजबूत करना है, ताकि उनकी तरफ से ज्यादा से ज्यादा बागी विधायकों की मौजूदगी सुनिश्चित हो सके। उन्होंने कहा कि 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद उद्धव ठाकरे के ‘विश्वासघात’ से भाजपा बेहद परेशान थी, उन्होंने दशकों पुराने भगवा गठबंधन को तोड़ते हुए राकांपा और कांग्रेस से हाथ मिलाया। जबकि शिवसेना खेमे में हंगामा राकांपा सुप्रीमो शरद पवार द्वारा संचालित महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के गठन के समय से है। भाजपा और एमवीए सहयोगियों द्वारा उठाई गई कुछ आपत्तियों और प्रति-आपत्तियों पर सोमवार शाम को कुछ घंटों के लिए मतगणना रुकने पर शिवसेना नेताओं को कुछ गड़बड़ होने का अहसास हुआ। शिंदे के नाराज होने का एक प्रमुख कारण ये भी है कि उनके पास शहरी विकास विभाग था जिसपर मुख्यमंत्री और उनके विश्वासपात्रों का कड़ा नियंत्रण था। शिंदे ने राज्य की सीमा के पार बागी विधायकों के शुरुआती समूह का नेतृत्व गुजरात में किया था, जिसने शिवसेना को तोड़ने की योजना को गति प्रदान की। वरिष्ठ नेता ने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर महाराष्ट्र भाजपा के नेता चुप्पी साधे हुए हैं। यह पूछे जाने पर कि राज्य की खुफिया मशीनरी आसन्न मुसीबतों की हवा निकालने में कैसे विफल रही, उन्होंने दावा किया कि ठाकरे ने मुख्यमंत्री के लिए दैनिक खुफिया ब्रीफिंग प्राप्त करने के लिए एक वरिष्ठ मंत्री और विश्वासपात्र की प्रतिनियुक्ति की थी।
भाजपा नेता का दावा- महाराष्ट्र में संघर्ष केवल सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं, शिवसेना को कमजोर करने की योजना
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