लखनऊ
पीएम नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के दो दिनों के दौरे के दौरान भारतीय जनता पार्टी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के दुर्ग को अभेद्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। गंगा स्नान से लेकर काशी विश्वनाथ धाम परिसर में पैदल गंगा जल लेकर जाना और बाबा विश्वनाथ की अराधना के साथ ही उन्होंने हिंदू और हिंदुत्व के बीच शुरू की गई बहस की दिशा मोड़ दी। मामला अब हिंदू प्रतीकों के प्रति समर्पण का भाव पर बहस तक पहुंच गया है। काशी के लोग साफ तौर पर यह कहते देखे गए, कि यह तो मोदी ही कर सकते हैं। पीएम मोदी के अपने धर्म को छुपाने की जगह उस पर गर्व करने ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के दुर्ग को अभेद्य बनाने का भरसक प्रयास किया है।
काशी के दो दिवसीय दौरे के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने धार्मिक प्रतीकों का भरपूर इस्तेमाल किया। काशी विश्वनाथ धाम जाने वाले एक सामान्य तीर्थयात्री की तरह गंगा स्नान किया। गेरुआ वस्त्र धारण किए नजर आए। बाबा विश्वनाथ के दरबार तक स्वयं जल लेकर पहुंचे। बाबा विश्वनाथ का पूरे विधान के साथ पूजन किया। विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन समारोह के दौरान त्रिपुंड में नजर आए। गले में रुद्राक्ष की माला। शाम को क्रूज से भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ दशाश्वमेध घाट पर भव्य गंगा आरती का नजारा लिया। रात को एक बार फिर बाबा विश्वनाथ धाम पहुंच कर वहां चल रहे विकासात्मक कार्यों का जायजा लिया।
विकास के साथ धर्म को जोड़ने की रणनीति
पीएम नरेंद्र मोदी ने काशी से यूपी चुनाव को लेकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की। वह रही विकास को धर्म के साथ जोड़कर देखने की कोशिश। उन्होंने जब कहा कि बिना बाबा भोला के आशीर्वाद के काशी में एक पत्ता नहीं हिल सकता तो उन्होंने भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा को खुलेआम प्रदर्शित किया। फरवरी 2019 में कुंभ के दौरान भी जब पीएम मोदी प्रयागराज पहुंचे थे, तो उन्होंने गंगा स्नान किया था। उसके कुछ महीनों बाद लोकसभा चुनाव था और पीएम मोदी ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के दुर्ग को तब भी मजबूत करने का प्रयास किया। वहीं, लोकसभा चुनाव 2019 के बाद उनका केदारनाथ की गुफा में जाकर ध्यान लगाना भी इसी का एक स्वरूप माना जाता है।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के हथियार पर विपक्ष के वार का असर सामने वाले पर ही होता है। यह भाजपा और पीएम मोदी साफ समझ चुके हैं। अगर उनकी पूजा और भक्ति पर सवाल उठाए जाते हैं तो भाजपा तुरंत सामने वाले को हिंदू विरोधी करार देती है। वहीं, इन मामलों पर मौन रहना तो विपक्ष के आत्मसमर्पण के रूप में जनता के सामने पेश किया जाता है। धर्म किसी भी व्यक्ति का नितांत निजी मामला होता है। संविधान में भी हर भारतीय नागरिक को अपने धर्म का पालन और अपनी पूजा पद्धति को अपनाने का अधिकार है। लेकिन, प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति को क्या धर्म का सार्वजनिक प्रदर्शन करना चाहिए, विपक्ष की ओर से पूछे जाने वाले ये सवाल, उनके खिलाफ ही हथियार की तरह अब इस्तेमाल होने लगे हैं।
अखिलेश के तंज पर मचा हंगामा
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के दुर्ग का अंदाजा इस बात से लगाइए कि अखिलेश यादव के एक बयान पर हंगामा मचा हुआ है। इसमें अखिलेश यादव यह कह रहे हैं कि आखिरी समय में लोग काशी जाते हैं। पीएम मोदी के काशी दौरे को लेकर उनके बयान के बाद आम काशी के लोगों में नाराजगी देखी जा रही है। काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है। इसके बाद भी इस प्रकार के बयान के दो अर्थ लगाए जाते हैं और राजनीतिक बयानों में तो कई। अब हर कोई इसे अपने स्तर से विश्लेषित करने में लगा है। वहीं, उनकी पार्टी के अबु आजमी ने तो भाजपा पर मंदिर मस्जिद की राजनीति करने का आरोप लगा दिया। मतलब, विपक्ष की ओर से भी राजनीति की दिशा अब उसी तरफ जाने लगी है, जिस तरफ भाजपा उसे ले जाना चाहती है।
योग संस्थान के कार्यक्रम के जरिए भी बड़ा संदेश
पीएम नरेंद्र मोदी ने काशी दौरे के दूसरे दिन सद्गुरु सदाफलदेव विहंगम योग संस्थान के कार्यक्रम के जरिए भी अपने विचारों को साफ किया। उन्होंने कहा कि कल विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन और आज यह कार्यक्रम, दैवीय भूमि पर ईश्वर के आशीर्वाद से यह कार्यक्रम संपन्न हो रहा है। उन्होंने संतों को ईश्वर का साधन बताया। पीएम ने कहा कि सद्गुरु सदाफलदेव जी ने समाज के जागरण के लिए विहंगम योग को जन-जन तक पहुंचाने के लिए यज्ञ किया था। आज वह संकल्प बीज हमारे सामने इतने विशाल वट वृक्ष के रूप में खड़ा है। धार्मिक प्रतीक और सम्मान के प्रति अपनी भावना जाहिर कर प्रधानमंत्री अपनी स्थिति को मजबूत करते दिख रहे हैं।