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मोरबी घटना की जवाबदेह कंपनी के खिलाफ लोग नाराज होकर भी हैं चुप! नहीं बन पा रहा चुनावी मुद्दा

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मोरबी के एलई कॉलेज के बाहर खड़े प्रतीक और सुंदर ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा- आप जानना चाहते हैं कि मोरबी पुल हादसा चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बन पा रहा है। आइए मैं आपको बताता हूं। वे दोनों पास में एक नींबू-सोडे की दुकान पर ले गए और दुकान मालिक राम जी शाहू से मिलवाया। फिर कहा कि ये दिल्ली से आए हैं और जानना चाहते हैं कि यहां हुईं मौतें चुनावी मुद्दा क्यों नहीं हैं। शाहू ने बताया कि जिस कंपनी ने इस पुल का काम किया है उस कंपनी के मालिक ने यहां की महिलाओं के उत्थान के लिए बहुत काम किया है। उनकी कंपनी में अस्सी फीसदी महिलाएं काम करती हैं। वह कहते हैं कि इस इलाके में सामाजिक सरोकार के लिहाज से कंपनी के मालिक ने बहुत काम किया है। प्रतीक और सुंदर कहते हैं कि ओरेवा कंपनी ने गुजरात के कच्छ इलाके से लेकर सौराष्ट्र में स्थानीय लोगों की जीविकोपार्जन के साथ-साथ सामाजिक दायित्व के लिए भी बहुत से कार्य किए हैं। प्रतीक कहते हैं कि इस घटना के लिए पुल का मेंटेनेंस काम करने वाली कंपनी को लेकर लोगों में नाराजगी तो बहुत है, लेकिन वह नाराजगी इस स्तर की नहीं है कि लोग उसके प्रति नफरत फैलाकर कोई बड़ा मुद्दा बनाएं। इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं कि आप कंपनी के सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई चीजों को नहीं जानते हैं। वह कहते हैं कि यह कंपनी अपने यहां महिलाओं को रोजगार देने के मामले में न सिर्फ अव्वल है, बल्कि इलाके के बच्चों की शिक्षा से लेकर कच्छ के इलाके में पीने के पानी की व्यवस्था के लिए भी कंपनी आगे रहती है। यही वजह है कि इलाके के रोग कंपनी से नाराज तो जरूर हैं लेकिन वह नाराजगी बहुत बड़े स्तर पर सामने नहीं आ रही है। सुंदर कहते हैं कि कंपनी की ओर से किए जाने वाले सामाजिक सरोकार और प्रयासों की वजह से स्थानीय लोगों में कंपनी से ज्यादा जिम्मेदार अधिकारियों के प्रति नाराजगी है। हालांकि सुंदर कहते हैं कि कंपनी के मालिक को इस पूरे मामले में मोरबी की जनता के सामने अपना पक्ष रखना चाहिए था और इस बात को खुलकर कहना चाहिए था कि वह जांच में पूरा सहयोग भी करेंगे। क्योंकि इस पूरी घटना के बाद कंपनी के मालिक की ओर से इस तरीके का बयान नहीं आया इसलिए लोगों में नाराजगी स्वाभाविक है। इस पूरे मामले को चुनावी मुद्दे में न बदले जाने की बात पर सुंदर नाराज होते हुए कहते हैं कि यह मुद्दा चुनावी तो बिल्कुल नहीं है। उनका कहना है कि मोरबी में हुई यह घटना हर आदमी के घर में हुई घटना के जैसी ही है। जिसमें सभी राजनीतिक दलों के लोगों की सहानुभूति है।

पाटीदार समुदाय का जबरदस्त हस्तक्षेप

हालांकि इस पूरे मामले में चर्चा करते हुए जगन भाई ढोलकिया कहते हैं कि भाजपा ने जिस तरीके से यहां पर अपने प्रत्याशी को बदला है, वह भी इस पूरे मामले को डैमेज कंट्रोल करने जैसा ही है। जगन कहते हैं कि भाजपा ने कांतिलाल अमृतिया को टिकट देकर मोरबी के पूरे मामले में न सिर्फ सुरक्षित दांव चला है, बल्कि इतने बड़े मामले को बखूबी हैंडल भी कर लिया है। तमाम राजनीतक समीकरणों की चर्चा करते हुए जगन भाई ढोलकिया कहते हैं कि दरअसल जो कंपनी पुल की देखरेख के लिए तय हुई थी, वह यहां के पाटीदार समुदाय से जुड़े व्यक्ति की है। इस इलाके में पाटीदार समुदाय का न सिर्फ बड़ा हस्तक्षेप है, बल्कि चुनावी समीकरण बनाने और बिगाड़ने में उनकी बड़ी भूमिका बनी रहती है। चूंकि कंपनी पाटीदार समुदाय से जुड़े व्यक्ति की है और यहां के भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी कि तीनों प्रत्याशी भी पाटीदार समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। ढोलकिया कहते हैं कि अगर कोई नेता इस मामले को ज्यादा तूल देता है तो संभव है कि चुनावी परिणामों की दशोदिशा भी उसी लिहाज से तय होती। गुजरात के सियासी जानकारों का कहना है कि पाटीदार समुदाय का असर सिर्फ सौराष्ट्र इलाके में ही नहीं बल्कि पूरे गुजरात में है। हालांकि जातिगत समीकरणों के आधार पर इनकी संख्या महज 12 से 14 फ़ीसदी ही है, लेकिन पाटीदार समुदाय की गुजरात में ही नहीं, बल्कि अपने देश से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत पकड़ मानी जाती है। गुजरात के सियासी जानकारों का कहना है कि बात जब वोट बैंक की आती है तो बड़े-बड़े मुद्दे पीछे हो जाते हैं। मोरबी में हुई बड़ी घटना भी इसी नजरिए से देखी जा रहा है। राजकोट के वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र कोटडिया कहते हैं कि अगर इस पूरे घटनाक्रम को राजनीतिक नजरिए से देखें, तो निश्चित तौर पर सभी राजनीतिक दलों के लिए इस घटना का राजनीतिकरण करना चुनाव के लिहाज से नुकसानदायक लग रहा था।

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