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यहां पिता-पुत्र की लड़ाई में भाजपा ने मारी बाजी, झागड़िया में सात बार के विधायक हारे

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गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। इस बार भारतीय जनता पार्टी ने नया रिकॉर्ड बना दिया है। 182 विधानसभा सीटों वाले गुजरात में भाजपा के 156 प्रत्याशी चुनाव जीत गए। कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। कांग्रेस 77 सीटों से सीधे 17 पर आ गई। मतलब कांग्रेस को 60 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। वहीं, इस बार सरकार बनाने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी के केवल पांच प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाए। एक सीट पर सपा उम्मीदवार विजयी हुए तो बाकी तीन सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीतीं। भरूच जिले की झागड़िया विधानसभा सीट पर भाजपा के रीतेशकुमार रमनभाई वसावा ने निर्दलीय छोटूभाई अमरसिंह वसावा को 23,500 वोटों से हरा दिया। भाजपा उम्मीदवार को 89,933 वोट जबकि निर्दलीय छोटूभाई को यहां 66,433 वोट मिले। तीसरे नंबर आप की उर्मिलाबेन मुकेशभाई भगत रहीं। उन्हें 19,722 वोट मिले जो कुल वोट का महज 9.99 फीसदी रहा। यानीं, उर्मिलाबेन अपनी जमानत भी नहीं बचा सकीं। आप के साथ ही कांग्रेस के फतेहसिंहभाई वसावा और एक अन्य निर्दलीय उम्मीदवार वसावा रणजीतसिंह गणपतसिंह की भी जमानत जब्त हो गई। वहीं, नोटा को 3,012 वोट मिले। झागड़िया सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में बीटीपी को जीत मिली थी। इस चुनाव में इस सीट से बीटीपी के संस्थापक छोटूभाई वसावा जीते थे। उन्होंने भाजपा के राजीवभाई वसावा को  48 हजार वोटों से हराया था। छोटूभाई वसावा 1990 से ही यहां से जीत रहे हैं। 1990,1995, 1998, 2002, 2007, 2012 और 2017 में लगातार सात बार उन्होंने इस सीट पर जीत दर्ज की। इस दौरान वह अलग-अलग दलों के साथ ही निर्दलीय भी चुनाव जीते हैं। 1990 में पहली बार छोटूभाई वसावा जनतादल के टिकट इस सीट पर  जीते थे। 1995 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर यहां से जीत दर्ज की तो 1998 में एक बार फिर जनता दल के टिकट पर जीते। 2002, 2007 और 2012 में लगातार तीन बार छोटूभाई वसावा जदयू के टिकट पर विधानसभा पहुंचे। 2017 के चुनाव से पहले छोटूभाई ने भारतीय ट्राइबल पार्टी का गठन किया और इसके टिकट पर एक बार फिर जीते। इस चुनाव से पहले छोटूभाई और उनके बेटे के बीच पार्टी पर वर्चस्व के लेकर हुई लड़ाई  का नुकसान पिता-पुत्र दोनों को हुआ। एक ओर जहां निर्दलीय चुनाव लड़े छोटूभाई अपना चुनाव हार गए। वहीं, दूसरी ओर उनके बेटे महेशभाई वसावा भी बीटीपी को एक भी सीट नहीं दिला सके। यहां तक कि महेशभाई ने पिता के खिलाफ नामांकन तक किया था। हालांकि, बाद में उन्होंने पर्चा वापस ले लिया। झागड़िया में पिता-पुत्र की लड़ाई का फायदा भाजपा को हुआ।

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