अमर उजाला संवाद कार्यक्रम में पहुंचे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी के चेयरमैन प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने उत्तराखंड सरकार को बड़ी नसीहत दी है। प्रोफेसर कुमार ने कहा कि यह सब जानते हैं कि उत्तराखंड में स्कूली शिक्षा व्यवस्था अच्छी है, खासकर बोर्डिंग स्कूल लेकिन उच्च शिक्षा में पिछड़ा हुआ माना जाता है। उन्होंने कहा, आजादी के अमृतकाल के दौर में नई शिक्षा नीति को लागू करने का काम चल रहा है। यह सही समय है राज्य में नए और श्रेष्ठ विश्वविद्यालय खोले जा सकते हैं। विशेष स्वायत्त संस्थान भी खोले जा सकते हैं। अमर उजाला संवाद कार्यक्रम के “नई राहें – सुनहरी राहें : उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में” सत्र में यूजीसी प्रमुख प्रो जगदीश कुमार ने कहा कि अच्छे स्कूल होना राज्य का मतलब शिक्षा की नींव मजबूत हैं। इसे आगे बढ़ाने का यह सही समय है। ऐसे में मेरी सलाह यही है कि राज्य सरकार, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से बात करके इस संबंध में अच्छा प्रयास कर सकती है। स्थानीय विश्वविद्यालयों का उत्कृष्ठ संस्थान बनाने में यूजीसी पूरा सहयोग करेगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में सबसे अच्छे बोर्डिंग स्कूल हैं और ये हायर एजुकेशन के लिए बेसिक फाउंडेशन है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अमलीकरण के प्रयासों पर हो रहे गाहे-बगाहे विरोध पर यूजीसी प्रमुख ने कहा कि नई शिक्षा नीति का विरोध का मतलब देश की प्रगति का विरोध करने समान है। देश का अमृतकाल चल रहा है। हम 2047 तक कैसा देश देखना चाहते हैं। हम एक लीडर के तौर पर देखते हैं। विकसित देश यही सबका उदे्दश्य है। शिक्षा और तकनीक के क्षेत्र में हमारे युवा सबसे आगे हों। इसलिए, नए बदलाव हो रहे हैं। प्रो कुमार ने बताया कि चार साल का डिग्री कार्यक्रम, विदेशी संस्थानों से संबद्धता, विदेशी संस्थानों को कैंपस खोलने की अनुमति देना, कॉलेज यानी उच्च शिक्षा में मल्टीपल एंट्री मल्टीपल एग्जिट सिस्टम लागू करना, ड्यूल डिग्री, क्रेडिट फ्रेमवर्क का निर्धारण जरूरी कदम हैं, जिन्हें उठाया गया है। यूजीसी प्रमुख ने कहा कि एनसीईआरटी की किताबों में हुए संशोधन का विरोध करना गलत है। इतिहास की किताबों में बहुत खामियां थीं। दक्षिण भारतीय इतिहास की भी उपेक्षा हुई है। उन्हें सुधारा जा रहा है। किताबें विशेषज्ञ लिखते हैं और उन्हें राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए। समय के साथ तकनीक बदल रही है। किताबें बदलना भी जरूरी है। सबको समान स्थान मिलना चाहिए। प्रो कुमार ने बताया कि बदलाव की प्रक्रिया में सभी स्टेकहोल्डर से फीडबैक लिया जाता है। इनमें से कुछ कथित अकादमिक विशेषज्ञ विरोध करने लग जाते हैं। अभी भी कुछ कथित अकादमिक विशेषज्ञ नाम हटाने को कह रहे हैं। उसके राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं। जेएनयू में भारत विरोधी विचारों का केंद्र होने संबंधी सवाल पर यूजीसी प्रमुख एवं जेएनयू पूर्व कुलपति ने कहा कि वहां एक छोटा सा ग्रुप है। जिन्हें आंदोलनजीवी कहा जाता है। उन्हें मीडिया हाइप देता है। लेकिन वास्तव में जेएनयू में बुद्दिमान छात्र बहुत ज्यादा है। जेएनयू की श्रेष्ठता का कारण यही छात्र हैं, जो सिर्फ अध्ययन पर ध्यान देते हैं। वर्षों से जेएनयू देश का नंबर वन विश्वविद्यालय है, आईआईएससी के बाद कभी नंबर टू पर आ जाता है। वहीं, फिल्मों के जरिये इतिहास और संस्कृति की नई और विवादित तस्वीर पेश किए जाने और फिल्म आदिपुरुष में छिड़े घमासान पर बोलते हुए यूजीसी प्रमुख ने कहा कि फिल्म मेकर्स और कलाकारों की अभिव्यक्ति आाजादी का सम्मान है लेकिन उन्हें लोगों की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहिए। श्रीराम और हनुमान करोड़ों लोगों की आस्था, आदर्श और प्रेरणा का केंद्र हैं। उनका सम्मान रखना चाहिए। इसी सत्र में शिक्षाविद और दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने अपने संबोधन में कहा कि नई शिक्षा नीति को लेकर यूजीसी में रात-दिन काम हो रहा है इसके लिए यूजीसी प्रमुख धन्यवाद के पात्र हैं। नारायण दत्त तिवारी जी का सपना था कि उत्तराखंड में मिनी जेएनयू जैसा संस्थान हो। जहां विदेशी भाषाएं पढ़ाई जाएं। रोजगार के लिए युवाओं को तैयार किया जाए। परंपरा स्ंस्कृति से जुड़ाव भी रहे। हम उसी रहा पर चल रहे हैं। प्रो डंगवाल ने जोर दिया कि आज शिक्षा और उद्यम जगत में तालमेल होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि बुरा लगता है जब सबसे बड़ी डिग्री पीएचडी होल्डर चतुर्थ श्रेणी की नौकरी करने के लिए पहुंच जाते हैं। ऐसी स्थितियों में बदलाव जरूरी है। उम्मीद है नई शिक्षा नीति में मल्टीपल एंट्री एग्जिट का प्रावधान छात्रों को नई सहूलियत और विकल्प प्रदान करेगा। प्रो डंगवाल ने कहा कि एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट देश के इतिहास की सबसे बड़ी पहल है। इसका स्वागत होना चाहिए। इसको धरातल पर सही से उतारने का प्रयास हो तो तकदीर बदलने वाली है।
डिजिटल मार्केटिंग बदल सकती है तकदीर : डॉ घनशाला