राहुल गांधी पर की गई कार्रवाइयों और उसके बाद उनके तेवरों ने एक बार फिर विपक्षी पार्टियों की एकता की उम्मीद जगाई है। खासकर तब जब सभी विपक्षी पार्टियों ने राहुल पर की गई कार्रवाई को गलत ठहराया है और मोदी सरकार पर सीधा निशाना साधा है। राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में जिस तरह यह कहा कि मोदी सरकार ने विपक्ष को इस बहाने एक मजबूत और कारगर हथियार दे दिया है, उससे यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या 2024 में कांग्रेस तमाम क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर मोदी के खिलाफ एक बड़े मोर्चे का हिस्सा बनेगी? सीपीआई के महासचिव डी राजा मानते हैं कि विपक्षी एकता की कोशिशें तो अपने-अपने तरीके से चल ही रही है। कई राज्यों में और खासकर तमिलनाडु में कांग्रेस भाजपा विरोधी ताकतों के साथ है ही। ये हो सकता है कि केरल या पश्चिम बंगाल में थोड़ी मुश्किल आए, लेकिन जहां तक मोदी सरकार को हटाने के लिए एक व्यापक मोर्चे का सवाल है, हम चाहते हैं कि कांग्रेस को इस मौके का फायदा उठाना चाहिए और एक राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते एकता की कारगर पहल करनी चाहिए। उनका कहना है कि बेशक कांग्रेस विरोध की वजह से बहुत सारी विपक्षी पार्टियां बनीं और क्षेत्रीय दलों का भी अपने-अपने कारणों से उदय हुआ, लेकिन जो मौजूदा स्थिति है उसमें पहली प्राथमिकता मोदी सरकार को हटाना है और इसके लिए कांग्रेस को सबके साथ मिलकर एक मोर्चा बनाने की मजबूत पहल करनी चाहिए। प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष औऱ जाने-माने लेखक विभूति नारायण राय का भी कहना है कि इस वक्त कांग्रेस को सभी विपक्षी और क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर चलने की जरूरत है। यह उचित मौका है और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने उनकी विश्वसनीयता और स्वीकार्यता जनता के बीच फिर से स्थापित की है। मोदी सरकार की ओर से की जा रही कार्रवाइयों ने भी उनके प्रति तमाम विपक्षी पार्टियों को नरम और सकारात्मक बना दिया है, ऐसे में ये तो तय है कि कांग्रेस को ‘लीड’ लेने की जरूरत है। वामपंथी पार्टियों का रुख वैसे भी भाजपा की बढ़ती ताकत को देखते हुए पिछले करीब एक दशक से कांग्रेस के प्रति खासा नरम रहा है। मोदी राज के इन नौ सालों में कांग्रेस को आगे बढ़ाने में ये पार्टियां भी अपने-अपने तरीके से लगी हुई हैं। खासकर तब जब विपक्ष के पास कोई भी ऐसा मजबूत चेहरा नहीं है, जो मोदी को सीधे तौर पर टक्कर दे सके। ऐसे में राहुल गांधी जिस तरह से एक जुझारू नेता के तौर पर उभरे हैं और जमीनी स्तर पर लगातार मेहनत करते दिख रहे हैं, इससे अब विपक्षी पार्टियों की उम्मीद और बढ़ गई है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी राहुल को अयोग्य ठहराये जाने और केंद्र की ओर से तमाम संस्थाओं का सियासी इस्तेमाल करने को लेकर राहुल के समर्थन में हैं। वह कहते हैं कि कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के साथ-साथ सभी विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। 2024 में मोदी राज का खात्मा भी तभी हो सकता है, जब आपसी अहंकार और द्वेष छोड़कर सब साथ आएं, अपनी ताकत और हैसियत को देखते हुए एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत इकट्ठे हों। ऐसा पहले भी हुआ है और तमाम बड़ी लड़ाइयां संसद से निकल कर सड़क पर लड़ी गई हैं, तभी बदलाव आया है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रवक्ता अजय कुमार मानते हैं कि यह कानूनी मामला है और आगे की लड़ाई कानूनी तौर पर ही लड़ी जा सकती है। ऊपरी अदालत जो फैसला सुनाएगी, देखा जाएगा, फिलहाल तो जो हो रहा है कानूनी तौर पर सही ही है। सियासी तौर पर देखें तो विपक्षी एकता की कोशिशें हमेशा होती हैं, लेकिन निजी हितों के टकराव और आपसी अहंकार के चलते ये होता तो दिखता नहीं। अब इस मुद्दे पर भी इसे लेकर शोरशराबा हो रहा है लेकिन फिलहाल इसकी संभावना लगती नहीं।
राहुल के बहाने कितनी कारगर हो सकती है विपक्षी एकता की कोशिश?
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