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राहुल को PM मोदी से नहीं, केजरीवाल से खतरा; AAP की सफलता के बीच कांग्रेस क्यों हो रही फेल

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भाजपा नेता समय-समय पर देश को कांग्रेसमुक्त करने की बात कहते रहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हमेशा कांग्रेस नेताओं पर ही हमले करते हैं। आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में कांग्रेस भी भाजपा और आरएसएस पर ही राजनीतिक बाण चलाती है। लेकिन चुनावी अंकगणित बता रहा है कि अब कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा खतरा आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल से है। केजरीवाल जहां भी चुनाव लड़ रहे हैं, केवल कांग्रेस के वोट बैंक को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं। दिल्ली और पंजाब के बाद गुजरात में भी यही परिणाम निकलकर सामने आया है। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 27.28 प्रतिशत वोट मिले हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव परिणाम की तुलना में उसे लगभग 14 प्रतिशत कम वोट मिले हैं, जबकि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को लगभग 13 प्रतिशत वोट मिले हैं। यानी माना जा सकता है कि केजरीवाल ने सीधे-सीधे कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई है और इसी के कारण कांग्रेस पिछली बार के चुनाव परिणाम 77 सीटों से खिसककर 17 पर आ गई। आदिवासियों के लिए आरक्षित 27 सीटों को कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। 2017 के चुनाव में कांग्रेस को इनमें से 15 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा केवल नौ सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी। इस बार के चुनाव में भाजपा ने रिकॉर्ड 23 सीटों पर सफलता पाई और कांग्रेस सिमटकर केवल तीन सीटों पर रह गई। आदिवासी रिजर्व सीटों पर कांग्रेस की टैली में यह गिरावट आम आदमी पार्टी के कारण आई जिसने वोटों में बंटवारा कर मोदी की राह आसान कर दी। कांग्रेस ने 30 ऐसी सीटें गंवाई हैं जहां आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने कांग्रेस के वोट काटकर जीत भाजपा की झोली में डाल दी। इसी साल की शुरूआत में हुए उत्तराखंड और गोवा विधानसभा चुनावों में भी ठीक यही कहानी दुहराई गई थी। उत्तराखंड में भाजपा को 44.3 प्रतिशत और कांग्रेस को 37.9 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस को भाजपा से 6.4 प्रतिशत वोट कम मिले। जबकि इसी चुनाव में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 3.3 प्रतिशत और बहुजन समाज पार्टी को 4.8 प्रतिशत वोट मिले। यदि इन दलों के कारण वोट न बिखरता तो उत्तराखंड का चुनाव परिणाम भी कुछ और हो सकता था। गोवा में भी ठीक यही चुनावी परिस्थिति बनी थी। गोवा विधानसभा चुनाव में भाजपा को 33.3 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 23.5 प्रतिशत वोट मिले। यहां कांग्रेस को भाजपा की तुलना में लगभग 9.8 प्रतिशत वोट कम प्राप्त हुए। इसी चुनाव में आम आदमी पार्टी को 6.8 और तृणमूल कांग्रेस को 5.2 प्रतिशत वोट कम प्राप्त हुए। दोनों दलों को कुल मिलाकर 12 प्रतिशत वोट मिले। यदि वोटों में बिखराव न होता तो गोवा की कहानी भी कुछ और हो सकती थी। राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार ने अमर उजाला से कहा कि कांग्रेस की असफलता और अरविंद केजरीवाल की सफलता के बीच अंतर केवल मुद्दों का चयन, नेतृत्व की विश्वसनीयता और संगठन पर नेतृत्व का समग्र परिणाम है। भाजपा ने इस समय चुनाव का समीकरण हिंदुत्व के मुद्दे के आसपास केंद्रित कर दिया है। यह नैरेटिव देखने के बाद भी राहुल गांधी और कांग्रेस के कुछ अन्य नेता बार-बार हिंदू मतदाताओं को असहज करने वाले बयान देते रहते हैं, जबकि इसी बीच अरविंद केजरीवाल स्वयं को ज्यादा बड़ा हिंदू नेता सिद्ध करने की कोशिश करते देखे गए हैं।

  • अरविंद केजरीवाल का अपने संगठन पर एकछत्र प्रभाव है और उन्हें पार्टी संगठन में चैलेंज करने वाला कोई नहीं है। इससे वे जो भी नीति ठीक समझते हैं, उसमें पार्टी की पूरी ताकत झोंक देते हैं, जबकि राहुल गांधी को पार्टी के अंदर की चुनौतियों से जूझना पड़ता है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब से लेकर उत्तराखंड तक हर जगह उन्हें स्थानीय नेतृत्व से बगावत का सामना करना पड़ा। इससे पार्टी की बात मजबूती से जनता के बीच नहीं जाती। जनता भी नेताओं की आपसी फूट देखककर दूसरे दलों की ओर रुख कर लेती है।
  • एक तरफ अरविंद केजरीवाल मोदी के नक्शेकदम पर चलते हुए साल के हर दिन चौबीसों घंटे राजनीति के मूड में दिखाई देते हैं, जबकि कांग्रस नेता केवल चुनाव आने पर राज्यों में सक्रिय होते हैं। नेतृत्व की निष्क्रियता से कांग्रेस कार्यकर्ता भी पूरी क्षमता से सक्रिय काम नहीं करते। इसका असर होता है कि चुनाव के समय पार्टी को अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाते।
  • कांग्रेस के पास विकल्प
  • अपनी राजनीतिक वापसी के लिए कांग्रेस नेतृत्व को बगावती नेताओं से कठोरता से निपटना चाहिए। अपनी पूरी शक्ति के साथ मुद्दों का चयन कर केंद्र या राज्य स्तर पर राजनीतिक दलों पर हमला करना चाहिए। चुनाव जीतने या हारने, दोनों ही स्थितियों में कांग्रेस को जमीन नहीं छोड़नी चाहिए और लगातार सक्रिय राजनीति करना चाहिए। गुजरात में कांग्रेस ने यही गलती की थी जहां पिछले चुनाव में शानदार 77 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस नेता लंबे समय तक सक्रिय नहीं रहे। इसका परिणाम हुआ कि अगले ही चुनाव में पार्टी 77 से घटकर 17 पर आ गई।

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