चुनाव आयोग ने जब से शिवसेना के नाम और चिह्न को लेकर अपना फैसला सुनाया है, तब से महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल मचा हुआ है। उद्धव ठाकरे पहले की कह चुके हैं कि चुनाव आयोग का फैसला लोकतंत्र के लिए सही नहीं है और वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। इस बीच महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार ने भी अपना रुख साफ कर दिया है। रविवार को मीडिया से बातचीत के दौरान शरद पवार ने कहा है कि वह शिवसेना के नाम और चिह्न के विवाद में पड़ना नहीं चाहते हैं। उन्होंने दो दिन पहले ही इस पर अपना रुख साफ किया था और अभी भी उस पर कायम हैं। दरअसल, एनसीपी प्रमुख ने चुनाव आयोग के फैसले के बाद उद्धव ठाकरे गुट को फैसले को स्वीकार करने को कहा था। पवार ने शुक्रवार को उद्धव को सलाह देते हुए कहा था कि ‘धनुष और बाण’ चुनाव चिह्न खो जाने से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि लोग उनके नए चुनाव चिन्ह को स्वीकार करेंगे। पवार ने कहा कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने 1978 में नया चुनाव चिह्न अपनाया था, लेकिन इसका पार्टी पर कोई असर नहीं हुआ था। एनसीपी प्रमुख ने ठाकरे समूह को सलाह दी कि एक बार फैसला हो जाने के बाद कोई चर्चा नहीं हो सकती है। इसे स्वीकार करें, एक नया चुनाव चिह्न लें। इसका (पुराने चुनाव चिह्न के नुकसान का) कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। उन्होंने याद दिलाया कि आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा था। उद्धव ठाकरे के हाथ से शिवसेना की कमान, उसका नाम और चुनाव चिह्न छीनने के बाद भी एकनाथ शिंदे शांत बैठने वाले नहीं हैं। शिवसेना को लेकर चुनाव आयोग के फैसले को कायम रखने के लिए वह हर एक चाल चल रहे हैं, जो उनके लिए जरूरी है। अब खबर है कि एकनाथ शिंदे ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट याचिका दायर की है। इस याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने के लिए उद्धव गुट सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गुहार लगा सकता है। ऐसे में इस मामले में कोई भी फैसला सुनाने से पहले शीर्ष अदालत महाराष्ट्र सरकार की दलील को भी सुने।
शिवसेना की जंग में अकेले छूट रहे उद्धव! अब राजनीति के इस चाणक्य ने भी विवाद से बनाई दूरी
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