महाराष्ट्र सरकार की ओर से जारी की गई एक उस अधिसूचना को कई हत्या के कैदियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें उन्हें बाकी सजा जेल में काटने का निर्देश दिया गया है। इन कैदियों को कोविड-19 महामारी के बीच रिहा किया गया था। कैदियों ने राज्य सरकार के 4 मई 2022 के उस सर्कुलर को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है जिसमें उन सभी को पंद्रह दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया है। कोरोना संक्रमण के प्रसार के बीच सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च, 2020 को जेलों में भीड़भाड़ के मामले का स्वत: संज्ञान लिया था और प्रत्येक राज्य को कैदियों की पहचान करने और उन्हें रिहा करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति एचपीसी) का गठन करने का आदेश दिया था। महाराष्ट्र सरकार ने एचपीसी की सिफारिश के आधार पर 8 मई, 2020 को एक अधिसूचना जारी की थी। जिसमें निर्देश दिया गया था कि जिन दोषी कैदियों की अधिकतम सजा सात साल से अधिक है, उनके आवेदन करने पर आपातकालीन पैरोल के लिए विचार किया जा सकता है। दोशियों की ओर से शुक्रवार को वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस पेश हुए और उन्होंने जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस विक्रम नाथ की अवकाश पीठक के समक्ष कैदियों की याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की। गोंसाल्वेस ने कहा कि महाराष्ट्र में कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं जिससे इन लोगों (भीड़भाड़ वाली जेलों में बंद कैदी) के जीवन के लिए एक नया खतरा पैदा हो गया है।
हत्या के दोषियों ने महाराष्ट्र सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती, जानें पूरा मामला
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