मुंबई
भोजन में तेल में तला-भूना या छौंका हुआ कुछ चटपटी चीज न हो तो ज्यादातर लोगों को खाने का मजा ही नहीं आता है लेकिन बढ़ती महंगाई खासकर पिछले २ वर्षों में खाने के तेलों की कीमतों में आए आसमानी उछाल के चलते लोगों के खाने का जायका गड़बड़ाने लगा है। खाद्य तेलों पर पड़ी महंगाई की मार के कारण देश में एक तिहाई परिवार अपनी रुचि के तेलों की बजाय सस्ता तेल इस्तेमाल करने को मजबूर हो गए हैं। देश में ६७ प्रतिशत परिवार के लोग अपने बजट में कटौती करके तथा अपनी जमा बचत को तोड़ कर अपना पेट भर रहे हैं। इसके बावजूद केंद्र सरकार द्वारा इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा हैं।
देश भर में स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से किए गए सर्वेक्षण में महंगाई के बाद की पारिवारिक स्थिति का चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। इससे पता चल रहा है कि आसमान छूती कीमतों का सामना कर रही देश की जनता वैâसे गुजर-बसर कर रही है? एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में पाया गया है कि देश में २४ प्रतिशत परिवार खाना पकाने के तेल का आवश्यकता के मुताबिक उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। जबकि ६७ फीसदी परिवारों को अपना कीमती सामान तोडकर खाने का बजट बनाना पड़ रहा है। सर्वेक्षण में पाया गया कि देश के २९ प्रतिशत परिवार ऐसे हैं, जो उपभोग के लिए खाद्य तेल के सस्ते विकल्प खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह उन परिवारों में से हैं, जिनको पैसों की कमी के चलते गुणवत्ता पर समझौता करना पड़ रहा है।
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया कि लगभग दो वर्षों में खाद्य तेल की कीमतों में १५० फीसदी की तेजी से बढ़ोतरी हुई है, जिससे खपत भी कम हुई है और सस्ता और कम गुणवत्ता वाला खाद्य तेल का उपयोग मजबूरन लोगों को करना पड़ रहा है। सर्वे के माध्यम से यह अहसास होता है कि बहुत कम आय वाले और मध्यम आय वर्ग के परिवारों की स्थिति विकट हो गई है। इसलिए स्वास्थ्य की कीमत पर सस्ते और कम गुणवत्तावाले खाद्य तेल का प्रयोग लोग करने लगे हैं। नतीजतन, उपयोगकर्ता को गुणवत्ता वाले तेलों में से मिलने वाले तत्वों से वंचित रहना पड़ रहा है।
हाय-हाय महंगाई!…. तेल ने किया बजट फ्राई! … तेल बदलने को मजबूर २४ प्रतिशत परिवार
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