74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों का एलान किया गया था। इस साल के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कुल 106 पद्म पुरस्कारों को मंजूरी दी है। इस सूची में कई ऐसे लोग भी हैं जो अभी तक गुमनामी की दुनिया में चुपचाप लोगों की सेवा या अपना विशिष्ट कार्य कर रहे थे। ऐसे ही एक गुमनाम हीरो पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के रहने वाले मंगला कांति रॉय हैं। 101 साल के सरिंदा वादक मंगला कांति रॉय को कला (लोक संगीत) के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। मंगला कांति रॉय सरिंदा के जरिए पक्षियों की अनोखी आवाज निकालने के लिए प्रसिद्ध हैं। वह पिछले आठ दशकों से प्रस्तुति के माध्यम से सरिंदा वाद्ययंत्र को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब से पद्म पुरस्कार की बात पता चली है तब से बहुत खुशी हो रही है। अपनी अभी तक की यात्रा के बारे में बताते हुए जलपाईगुड़ी के 102 वर्षीय सरिंदा वादक ने कहा कि मैं चार-पांच साल की उम्र से सरिंदा बजा रहा हूं। इतना ही नहीं मैंने दिल्ली, कामाख्या, गुवाहाटी से लेकर दार्जिलिंग तक सरिंदा बनाया है।
कला से नहीं कमाया धन
जलपाईगुड़ी के सुदूर धवलागुरी गांव के रहने वाले पद्म अवार्डी ने कहा कि कम उम्र में ही उन्हें पक्षियों की आवाज और अन्य जानवरों की आवाज निकालने की कला में महारत हासिल हो गई थी। इसके बाद वह वाद्य यंत्र सरिंदा का वादन करने लगे। उन्होंने सम्मान को लेकर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि कला के प्रति मेरी प्रतिबद्धता के बावजूद मैने कभी इसे धन कमाने का जरिया नहीं बनाया। लोक कलाकार मंगला कांति रॉय अपने गांव में बेहद सादगी पूर्ण और साधारण जीवन जीते हैं। उनके तीन बेटे और एक बेटी है, इसके बावजूद वे अकेले ही रहते हैं। उन्हें 2017 में ममता बनर्जी सरकार ने ‘बंगा रत्न’ से सम्मानित किया था।