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आम आदमी पर महंगाई की मार लगातार पड़ रही है। बाजार में टमाटर के दाम बढ़ने के साथ अब अदरक-हरी मिर्च के दाम भी बढ़ चुके हैं। टमाटर की कीमतें अभी 120 रुपये से लेकर 160 रुपये तक पहुंच चुकी हैं। बढ़ती टमाटर की कीमतें देश की अनुमानित महंगाई दर पर भी असर डाल सकती हैं। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक के शोधकर्ताओं की रिपोर्ट में इसे लेकर चिंता जाहिर की है। रिपोर्ट बताया गया है कि टमाटर की कीमत का असर प्याज-आलू पर भी होता है। भारतीय रिजर्व बैंक के अध्ययन में सामने आया कि अगर टमाटर के दाम में कोई बदलाव होता है, तो प्याज और आलू पर भी उसका असर नजर आने लगता है। क्योंकि ये तीनों सब्जियां काफी हद तक एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं। इसलिए इनकी कीमतें एक दूसरे पर असर डालती हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में टमाटर, प्याज और आलू की हिस्सेदारी बहुत मामूली है, लेकिन ये प्रमुख सब्जियां महंगाई दर पर असर डालने की क्षमता रखती हैं। अमर उजाला से चर्चा में अर्थशास्त्री प्रो. एस.के. शर्मा का कहना है कि खाद्य बास्केट में इन सब्जियों का खास प्रभाव है। इन सब्जियों के दाम में उतार चढ़ाव होने का सीधा असर महंगाई पर दिखाई देता है। जून के आंकड़ों की समीक्षा में करें तो अभी इसका असर नहीं दिखाई दे रहा है। लेकिन आगे चलकर महंगाई दर बढ़ने का अनुमान नजर आ रहा है। क्योंकि सिर्फ सब्जियां ही महंगी नहीं हुई हैं, बल्कि मोटे अनाज-दूध के दाम भी बढ़े हैं। 2018-2019 तक खाद्य कीमतों की महंगाई दर नीचे रहती थी। इसके पीछे की सबसे अहम वजह बागवानी उत्पाद और खाद्यान्न के पर्याप्त भंडार होना थी। लेकिन हाल ही के वर्षों में खाद्य महंगाई दर बढ़नी शुरू हुई है। इसकी सबसे अहम वजह सब्जियों के बढ़ते दाम भी हैं। महंगाई की मुख्य वजह बहुत ज्यादा बारिश है। इसकी वजह से प्याज, टमाटर और आलू के दाम बढ़े हैं। सीपीआई फूड एंड बेवरेज बास्केट में सब्जियों की हिस्सेदारी 13.2 फीसदी है। इनकी खाद्य महंगाई संचालित करने में अहम भूमिका होती है। आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि कीमत में बढ़ोतरी और उसके बाद खाद्य महंगाई में आने वाली कमी में सब्जियों की अहम भूमिका होती है। हाल ही में जून के मौद्रिक नीति संबंधी बयान में घरेलू दर तय करने वाली समिति ने कहा था कि प्रमुख महंगाई के भविष्य की राह खाद्य की कीमतों की चाल से प्रभावित होने की संभावना है। खाद्य वस्तुओं की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी होती है। मई महीने में सीपीआई महंगाई गिरकर 25 माह के निचले स्तर 4.25 फीसदी पर आ गई थी, क्योंकि खाद्य महंगाई 18 माह के निचले स्तर 2.91 फीसदी  पर थी। अप्रैल मई में उपभोक्ता महंगाई 4.5 फीसदी  थी।

वित्त मंत्रालय भी परेशान है टमाटर के बढ़ते दामों से

टमाटर के बढ़ते दामों ने वित्त मंत्रालय की भी चिंता बढ़ा दी है। वित्त मंत्रालय के इकोनॉमिक्स डिवीजन ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए जो वार्षिक आर्थिक समीक्षा जारी की, इसमें साफ लिखा है कि बेमौसम बारिश जैसे घरेलू कारणों की वजह से टमाटर जैसी कुछ सब्जियों की कीमतों पर दबाव बना रखा है। वित्त मंत्रालय ने इस रिपोर्ट में कहा है कि अल नीनो के असर के साथ थोक आधारित महंगाई में कमी के बाद भी खुदरा कीमतों पर इसका असर नहीं होने का खामियाजा उपभोक्ताओं को उठाना पड़ रहा है। वित्त मंत्रालय ने अपने इस रिपोर्ट में कहा कि ग्लोबल सप्लाई चेन में सुधार, सरकार के नीतिगत फैसलों और आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी की सख्ती के चलते 2022-23 वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में महंगाई में कमी आई है। लेकिन बेमौसम बारिश के चलते टमाटर समेत कुछ सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। रिपोर्ट में चिंता जाहिर करते हुए कहा गया है कि अल नीनो के चलते घरेलू फूड प्राइसेज पर असर, साथ ही थोक मूल्य में कमी के बावजूद खुदरा कीमतों में कमी नहीं होने के चलते महंगाई दर ऊंची बनी रह सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक तनाव, ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में उठापटक, ग्लोबल स्टॉक मार्केट में गिरावट, अल नीनो के असर और ग्लोबल डिमांड के चलते कमजोर वैश्विक मांग का असर विकास की रफ्तार पर पड़ सकता है।

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