अफगानिस्तान से अमेरिका समर्थित सरकार को अपदस्थ कर भले ही तालिबान ने कब्जा जमा लिया है, लेकिन यह देश में उपद्रव का अंत नहीं है। इससे उलट अब अस्थिरता, अशांति और गृह युद्ध जैसे हालातों में इजाफा हो गया है। काबुल एयरपोर्ट पर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट-खुरासान की ओर से किए गए धमाकों ने यह साफ कर दिया है। इन धमाकों में 95 लोगों की मौत हुई है, जिनमें 13 अमेरिकी सैनिक भी शामिल हैं। 31 अगस्त को अमेरिका और नाटो देशों के सैनिकों की वापसी का आखिरी दिन है। ऐसे में आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ सकते हैं। आइए जानते हैं, अफगानिस्तान में बिगड़े हालातों के लिए कौन से संगठन हो सकते हैं जिम्मेदार…
तालिबान की स्थापना मुल्ला मोहम्मद उमर ने 1994 में की थी। इसमें उन्होंने 1980 के दशक में सोवियत से लड़ने वाले मुजाहिदीनों या फाइटर्स को शामिल किया था। तालिबान ने इसके बाद 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में अपना कुख्यात शासन भी चलाया था। इस दौरान लोगों पर भीषण अत्याचार होते थे और महिलाओं पर खासी पाबंदियां लागू थीं। लेकिन अमेरिका में हुए आतंकवादी हमले के बाद 2001 में वह सत्ता से बेदखल हो गया था। कुछ वक्त अमेरिका के हाथों में देश रहने के बाद उसके समर्थन वाली सरकारें ही रहीं और अब तालिबान फिर से हिंसा के दम पर सत्ता पर काबिज हो गया है।
नॉर्दर्न अलायंस भी तालिबान को शांति से नहीं बैठने देगा
तालिबान ने भले ही अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है, लेकिन अब भी पंजशीर घाटी से वह दूर है। यहां नॉर्दर्न अलायंस काबिज है, इसने ही 1996 से 2001 के दौरान भी तालिबान से मोर्चा लिया था। यहां मुख्य तौर पर उज्बेक और ताजिक मूल के लोगों की आबादी है। इसका नेतृत्व फिलहाल अहमद मसूद के हाथों में है। इसके अलावा देश के पहले उपराष्ट्रपति रहे अमरुल्लाह सालेह का भी इसे समर्थन प्राप्त है।
ISIS-K भी बना है तालिबान का कट्टर दुश्मन
काबुल एयरपोर्ट पर हुए भीषण हमले की जिम्मेदारी लेने वाला खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट खुरासान भी अफगानिस्तान में अशांति की बड़ी वजह बन सकता है। यह संगठन भी तालिबान की तरह ही कट्टर सुन्नी इस्लामिक है, लेकिन कई मुद्दों पर इसके मतभेद हैं। यह आतंकी संगठन आईएस के सरगना रहे अबू बकर अल-बगदादी को अपना नेता मानता रहा है, जिसने बीते सालों में कई खूंखार हमले कराए थे और अमेरिकी कार्रवाई में मारा गया था। अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी को लेकर अमेरिका और तालिबान के बीच हुई डील का भी यह विरोध करता रहा है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसके लड़ाकों की संख्या 500 से 10,000 के करीब है।
अलकायदा के फिर खूंखार होने का है खतरा
भले ही तालिबान ने अपने राज में आतंकी संगठनों को न उभरने देने और अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी और देश के खिलाफ न होने देने की बात कही है, लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान के हक्कानी ग्रुप का अलकायदा से करीबी रिश्ता है।