दुनिया की सबसे बड़ी हस्तप्रत किताब “शिक्षापत्री” का वजन 120 किलो है और यह 8 फीट चौडी और 5.5 फीट ऊँची है। गुजरात के परम पूज्य श्रीज्ञानजीवनदासजी स्वामी-कुंडलधाम की प्रेरणा से तैयार शिक्षापत्री वडतालधाम को १० अप्रैल को समर्पित की गई
दुनिया की सबसे बड़ी हस्तलिखित पुस्तक के रूप में परब्रह्म परमात्मा पुर्णपुरुषोत्तम भगवान श्री स्वामिनारायण द्वारा रचित शिक्षापत्री को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अवार्ड से सम्मानित किया गया है।
इस सचित्र शिक्षापत्री में 212 श्लोक हैं, कुल 224 हस्तलिखित पृष्ठ और चित्र है जो कि कुंडलधाम के लगभग 150 हरिभक्तों ने केवल 24 घंटे में बनाया है और लगभग 10 घंटे में इसकी बाइंडिंग का कार्य किया गया. शिक्षापत्री को 196 साल पहले स्वयं श्री स्वामिनारायण प्रभु ने वडताल में रहकर लिखा था इसलिए पूज्य स्वामी जी ने इस विशाल शिक्षापत्री को इसकी प्रागटय भूमि वडतालधाम को समर्पित किया है।
परम पूज्य श्री ज्ञानजीवनदासजी स्वामी की प्रेरणा से कुंडलधाम द्वारा तैयार की गई इस हस्तलिखित पुस्तक का लोकार्पण वडतालधाम में भव्य संग्रहालय के भूमिपूजन कार्यक्रम के अवसर पर किया गया। इस शिक्षापत्री का उद्देश्य मानव जाति और भक्तों के कल्याण के लिए भगवान श्री स्वामिनारायण के आशीर्वाद और आज्ञा का लाभ सब तक पहुँचाना है। मानव कल्याण के उद्देश्य से बनाई गई इस शिक्षापत्री के सभी 224 पृष्ठ शुरू से अंत तक हस्तलिखित हैं तथा सभी चित्र भी हस्तनिर्मित हैं। पूरी पुस्तक में कहीं कोई छपाई का उपयोग नहीं किया गया है.
196 साल पहले वड़तालधाम में रहकर भगवान श्री स्वामिनारायण ने मूल संस्कृत भाषा में 212 श्लोकों वाली इस शिक्षापत्री की रचना की थी। वर्तमान में संस्कृत, हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी भाषाओं में बनी यह शिक्षापत्री आठ फीट चौडी, साढ़े पांच फीट ऊंची और 120 किलो वजनी है।
गौरतलब है कि गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की वेबसाइट में उल्लेख है कि स्वामिनारायण संप्रदाय के लाखों हरिभक्त रोज सुबह इस शिक्षापत्री की पूजा और रोजाना इसका पाठ करते हैं। इस शिक्षापत्री का पालन करने से असंख्य लोग सदाचार और भगवद प्राप्ति के मार्ग पर गतिमान है. वडतालधाम में समर्पित यह सचित्र विशालकाय शिक्षापत्री लाखों भक्तों के लिए दिव्यदर्शन की एक अनूठी स्मारिका होगी।
इस अवसर पर पूज्य श्री ज्ञानजीवनदासजी स्वामी को वड़ताल पीठाधिपति आचार्य श्रीराकेशप्रसादजी महाराज एवं संतों के सांनिध्य में वरिष्ठ संतों द्वारा प्रमाण पत्र एवं पदक भी प्रदान किए गए।