पूज्य मोरारी बापू के श्रीमुख से हिंदुस्तान के परम पावन स्थान- राधेजू और किशन कन्हैया की मधुर लीला भूमि में, “मानस वृंदावन” कथा का गान हो रहा है। नव दिवसीय कथा अनुष्ठान के आज के अंतिम दिन, कथा के आयोजक पुंडरीकजी ने व्यासपीठ के प्रति अपना स्नह आदर प्रकट किया। तत्पश्चात वीडियो क्लिप से उड़ीसा के राज्यपाल श्री ने वैष्णव धाम की प्रवाही परंपरा की शब्द वंदना की। और व्यासपीठ की भाव वंदना की।
कथा के आज के नव दिवसीय रामकथा के विराम के दिन, पूज्य बापू ने अहेतु हेतु के कारण हुए इस आयोजन के लिए प्रसन्नता जताई।
बापू ने कहा कि – “यहां तो कृष्ण हमेशा ही रहता है।कृष्ण कथा भी यहां कायम चलती है।केवल कथा के गायक बदलते रहते हैं! और हमें आज जाना तो पड़ेगा ही – क्योंकि फिर से वापस आ सके!” गौरांग महाप्रभु को विदा देते समय
आपका शिष्य कहता है कि- “भगवान या तो किसी साधु का संग न दें, और अगर संग दे, तो उस साधु से स्नेह न दे। अगर स्नेह भी दे, तो फिर वियोग न दें और अगर वियोग भी दे, तो फिर हमारे प्राण को रहने न दे।”
यह बिल्कुल विचित्र क्रम है। हम तो चाहते हैं कि साधु का संग हो।लेकिन जब साधु का वियोग होता है, तब मानो हमारे प्राण चले जाते हैं। रमाशंकर बजोरिया जी का परिवार और वैजयंती धाम की पावन परंपरा के सभी वैष्णवो के प्रति अपना प्रेम- आदर प्रकट करते हुए बापू ने कहा कि – “आप सब का बहुत भाव रहा। आना जाना तो होता रहेगा।”
समय की पाबंदी के कारण पूज्य बापू ने काकभुशुंडि रामायण के न्याय से रामकथा के बाकी के प्रसंगों का विहंगावलोकन करते हुए, कथा के क्रम को आगे बढ़ाया।
सुंदर सदन में निवास करके, सायंकाल को नगर दर्शन के लिए रामजी लक्ष्मण के साथ निकलते हैं- इस प्रसंग का सात्विक-तात्विक संवाद करते हुए बापू ने कहा कि –
“अगर दुनिया का – संसार का- दर्शन परमात्मा को साथ रखकर करोगे, तो भटक नहीं जाओगे।”
दूसरे दिन सुबह राम-लक्ष्मण, गुरु पूजा के लिए पुष्प लेने पुष्प वाटिका में जाते हैं। उसी वक्त जानकी जी गौरी पूजा के लिए वहां आती है। राम और जानकी दोनों का ही बाग में जाने का हेतु अद्भुत और परम रहा। पुष्प वाटिका के इस पूरे प्रसंग को तत्व के रूप में समझाते हुए बापू ने कहा कि- “बाग में जाना, माने सत्संग में जाना। कथा तो सत्संग है ही। संतो की सभा में जाना सत्संग है। ऐसे ही अगर किसी फिल्म का गीत हमें परमात्मा के प्रति गति करवाने में सहायक हो, तो ऐसे फिल्मी गीत को गाना भी तो सत्संग है!”
पुष्प वाटिका से आने के बाद स्नान किया। इसका मतलब- सत्संग करते हुए, किसी साधु के हृदय में डुबकी लगाना। साधु को हम याद करें, यह तो घटना होती ही है। पर कोई पहुंचा हुआ बुद्ध पुरुष- जिसे परमात्मा याद करते हो, ऐसे साधु अगर आपको याद करें, तो समझ लेना कि आप सत्संग में नहा रहे हो! किसी साधु की प्रियता प्राप्त हो, इससे ज्यादा सद्भाग्य और नहीं हो सकता।
साधु की प्रियता प्राप्त करने के बाद, श्रद्धा से सेवन किया जाए। तब कोई गुरु आएगा, जिन्होंने प्रभु के दर्शन किए हो – जिसने प्रभु को महसूस किया हो, वह हमें परमात्मा के दर्शन करवाएंगे। और परमात्मा के दर्शन के लिए जाते वक्त अपने गुरु को आगे रखना। बापू ने इस प्रसंग से एक और बात भी बताई की –
“प्रभु का दर्शन, प्रकृति के माध्यम से भी हो सकता है। प्रकृति में प्रभु है।”
बुद्ध पुरुष बोले, या खामोश रहे- दोनों बातें आशीर्वादक ही होती हैं।
“खामोशी को दुआ समझो, वह बोल दे तो हुआ समझो।”
कथा के क्रम में आगे चलते हुए, बापू ने धनुष भंग की घटना का सात्विक तात्विक और वास्तविक दर्शन प्रस्तुत करके श्रोताओं को धन्य कर दिया।
बापू ने कहा कि – “मानस में ७० बार किसी न किसी रूप में तुलसी शब्द का प्रयोग हुआ है।मानस में जहां भी देखो, तुलसी दिखाई देते हैं- इसलिए मैंने इस कथा को” मानस वृंदावन” कहा है।”
आखिर में पूज्य बापू ने इस कथा के बारे में अपनी पूरी प्रसन्नता व्यक्त की। सुआयोजन, सुव्यवस्था और सुचारूरूप से कथा अनुष्ठान पूर्ण होने पर साधुवाद देते हुए बापू ने नव दिवसीय मानस वृंदावन कथा को विराम दिया। और साथ में सभी श्रोताओं को सावधान करते हुए यह भी कहा कि-
“कोरोना की दूसरी लहर बढ़ती जा रही है। ऐसे में अगर आप पंडाल में आकर कथा ना सुन पाओ, तो कोई चिंता नहीं। घर में बैठे टीवी पर ही कथा श्रवण करो।और अगर कथा में आना ही है, तो पूरी सावधानी बरतना।
इस समय में हम सबको कोरोना बढता जा रहा है- इस बात की चिंता है ही, पर व्यासपीठ को इसकी सबसे ज्यादा चिंता है, ऐसा बापू के भाव से व्यक्त होता था। क्योंकि बापू चाहते हैं कि – सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया:।
“मानस वृंदावन”(दिवस नव) वृंदावन में कृष्ण और कृष्ण कथा कायम है साधु अगर आप को याद करें तो आप ने सत्संग में स्नान कर लिया
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